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आगमज्ञान की आधारशिला : पच्चीस बोल * ९७ *
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बाह्य तप तो कर्मबंधन करता है इसलिए आभ्यन्तर तप निर्जरां का साक्षात् हेतु है और बाह्य तप परम्परा से हेतु है। कर्मों से मुक्त होना निर्जरा है तो मोक्ष क्या है ? इस सन्दर्भ में कहा गया है कि कर्मों का एक देश से दूर हो जाना निर्जरा है और सर्वथा कर्मों से मुक्त होना मोक्ष है। अर्थात् कर्मबन्ध से देशमुक्ति निर्जरा है और सर्वमुक्ति मोक्ष है। .. ___चूँकि तप बारह प्रकार के होते हैं अतः निर्जरा के भी बारह भेद हो जाते हैं। यद्यपि स्वरूप की दृष्टि से निर्जरा एक ही प्रकार की है। ये बारह भेद-छह बाह्य और छह आभ्यन्तर इस प्रकार से विभक्त हैंबाह्य तप-निर्जरा
(१) अनशन तप (उपवास आदि), (२) ऊनोदरी तप (भूख से कम खाना), (३) भिक्षाचरी तप (निर्दोष भिक्षा ग्रहण करना), (४) रस परित्याग तप (स्वादरहित भोजन), (५) काय-क्लेश तप (वीरासन आदि आसनों का प्रयोग),
(६) प्रतिसंलीनता तप (एकान्त शय्यासन)। आभ्यन्तर तप-निर्जरा
(७) प्रायश्चित्त तप (दोषों की आलोचनादि के द्वारा शुद्धि), (८) विनय तप (गुरु आदि की भक्ति), (९) वैयावृत्य तप (आचार्य आदि की सेवा), (१०) स्वाध्याय तप (शास्त्र वाचनादि), (११) ध्यान तप (मन की एकाग्रता),
(१२) व्युत्सर्ग तप (शरीर के व्यापार आदि का त्याग)। (८) बन्ध तत्त्व (Bondage Element-बोण्डेज एलीमेण्ट)
आत्मा का कर्म के साथ सम्बन्ध बन्ध कहलाता है। आत्मा और कर्म-पुद्गलों का यह सम्बन्ध या एकीभाव दूध और पानी या अग्नि और लोह पिण्ड की तरह होता है। कषाय और योग के द्वारा आत्म-प्रदेश में जब कम्पन होता है तब आत्मा के साथ कर्म का बन्ध होता है। जैसे कोई व्यक्ति शरीर पर