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आगमज्ञान की आधारशिला : पच्चीस बोल * ९१ *
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कि काल एक प्रदेशीय है। इसके अणु रत्नराशि के समान बिखरे, यानी अलग-अलग रहते हैं। काल का कोई भेद नहीं होता है न यह स्कन्ध रूप में और न देश-प्रदेश के रूप में विभक्त है। काल तो बस समय रूप है। ये समय असंख्य है और परस्पर असम्बद्ध है। शेष चारों अजीव तत्त्व स्कन्ध, देश, प्रदेश
और परमाणु के आधार पर पुनः विभक्त किये गये हैं जिसमें स्कन्ध का अर्थ है अविभाज्य, जिसके खण्ड न हों। स्कन्ध अनन्त और विविध प्रकार के कहे गये हैं जैसे दो परमाणुओं का समूह द्विप्रदेशी स्कन्ध, तीन परमाणुओं का समूह त्रिप्रदेशी स्कन्ध, असंख्य परमाणुओं का समूह असंख्य प्रदेशी स्कन्ध। स्कन्ध के दो रूप हैं-एक स्वाभाविक स्कन्ध जिसमें धर्मास्तिकाय, अधर्मास्तिकाय, आकाशास्तिकाय और जीवास्तिकाय आते हैं। इनके विभाग नहीं होते हैं। दूसरे वैभाविक स्कन्ध। ये समुदित होते हैं और ये बिखर जाते हैं।
देश का अर्थ है स्कन्ध का एक अंश, यानी स्कन्ध का एक कल्पित भाग। प्रदेश स्कन्ध का सर्व सूक्ष्म अंश होता है, यानी स्कन्ध का सूक्ष्म से सूक्ष्म विभाग प्रदेश कहलाता है। यह स्कन्ध का निरंश अंश है अर्थात् जिस अंश का दूसरा अंश न हो सके. वह प्रदेश है। परमाण एक वर्ण, एक गंध, एक रस और दो स्पर्श वाला होता है। दो स्पर्शों में एक स्पर्श तो शीत और उष्ण में से एक तथा दूसरा स्पर्श स्निग्ध और रूक्ष में से एक। प्रदेश और परमाणु एक ही हैं। बस, जब तक वह स्कन्ध से संलग्न है तब तक वह प्रदेश है और जब वह स्कन्ध से पृथक् हो जाता है तब वह परमाणु का रूप ले लेता है। प्रारम्भ के तीनों अस्तिकाय के स्कन्ध, देश व प्रदेश के रूप में तीन-तीन भेद किये गये हैं। केवल पुद्गलास्तिकाय, जिसमें वर्ण, गंध, रस व स्पर्श हैं, में परमाणु को और जोड़ दिया जाता है। प्रारम्भ के तीन मूलतः अखण्ड पदार्थ हैं, अनादि व अनन्त हैं। किन्हीं अवयवों से मिलकर नहीं बनते हैं। अतः इनके देश और प्रदेश मात्र बुद्धि परिकल्पित हैं, वास्तविक नहीं। इसलिए इन तीनों में परमाणु भेद नहीं माना गया है। दूसरी बात परमाणु वही प्रदेश होता है जो स्कन्ध से पृथक् हो जाता है और ये तीनों स्कन्ध से कभी पृथक् नहीं होते अतः परमाणु इनका भेद नहीं है।
इस प्रकार अजीव तत्त्व के चौदह भेदों को निम्न तालिका से आसानी से समझा जा सकता है। यथा