________________
* ९० * चौदहवाँ बोल : नव तत्त्व के एक सौ पन्द्रह भेद
सबसे पहले हम एकेन्द्रिय जीव को लेते हैं। एकेन्द्रिय जीव भी सूक्ष्म और स्थूल के आधार पर दो प्रकार के होते हैं-एक सूक्ष्म जीव जो आँखों से दिखाई नहीं देते हैं। सम्पूर्ण लोक में व्याप्त हैं। ये सूक्ष्म नाम कर्म के उदय वाले जीव हैं। दूसरे स्थूल जीव हैं, जिन्हें बादर एकेन्द्रिय जीव कहा जाता है। ये जीव समूह रूप में दिखाई पड़ते हैं। इनका अवगाहन लोक के एक देश में है। ये बादर नाम कर्म के उदय वाले जीव हैं। सूक्ष्म-स्थूल एकेन्द्रिय जीवों से लेकर पंचेन्द्रिय तक के जीवों में प्रत्येक के पर्याप्त और अपर्याप्त भेद से दो-दो प्रकार किये गये हैं जिन्हें निम्न चार्ट से समझ सकते हैं। यथा
जीव तत्त्व .
एकेन्द्रिय जीव द्वीन्द्रिय जीव त्रीन्द्रिय जीव चतुरिन्द्रिय जीव पंचेन्द्रिय जीव
सूक्ष्म स्थूल पर्याप्त अपर्याप्त पर्याप्त अपर्याप्त पर्याप्त अपर्याप्त
पर्याप्त अपर्याप्त
संज्ञी (मन वाले)
असंज्ञी (मन रहित)
पर्याप्त अपर्याप्त पर्याप्त अपर्याप्त . पर्याप्त अपर्याप्त । (२) अजीव तत्त्व (Non-soul Element-नॉन-सोल एलीमेण्ट)
अजीव तत्त्व के पाँच भेद और उत्तर चौदह भेद हैं। यथा(१) धर्मास्तिकाय (Fulcrum of motion-फलक्रम ऑफ मोशन), (२) अधर्मास्तिकाय (Fulcrum of rest-फलक्रम ऑफ रेस्ट), (३) आकाशास्तिकाय (Space element-स्पेश एलीमेण्ट), (४) काल (Time element-टाइम एलीमेण्ट), (५) पुद्गलास्तिकाय (Matter as substance element-मेटर एज ___सब्सटेन्स एलीमेण्ट)।
इसमें एक शब्द जुड़ा है अस्तिकाय। इसका अर्थ है बहुप्रदेशीय अस्तित्व वाला तत्त्व। काल के साथ अस्तिकाय नहीं जुड़ा है। इससे यह प्रतीत होता है