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________________ चौदहवाँ बोल: नव तत्त्व के एक सौ पेन्द्रह भेद (नव तत्त्व के भेद-प्रभेद का विश्लेषण) (१) जीव तत्त्व के चौदह भेद, (२) अजीव तत्त्व के चौदह भेद, (३) पुण्य तत्त्व के नौ भेद, (४) पाप तत्त्व के अठारह भेद, (५) आस्रव के बीस भेद, (६) संवर के बीस भेद, (७) निर्जरा के बारह भेद, (८) बंध के चार भेद, (९) मोक्ष के चार भेद। तत्त्व (Element-एलीमेण्ट) का अर्थ है-पदार्थ का स्वरूप। जो पदार्थ सारभूत हो, जिसका वास्तविक अस्तित्व हो, वह तत्त्व कहलाता है। 'तत्त्व' शब्द में मूल शब्द है-तत् जिसका अर्थ है-वह। इस 'तत्' शब्द में 'त्व' प्रत्यय लगा हुआ है। 'त्व' का अर्थ है-'पना'। इस प्रकार पदार्थ का पदार्थपना ही उसका तत्त्व है, जैसे-जल का जलत्व, अग्नि का अग्नित्व, स्वर्ण का स्वर्णत्व, जीव का जीवत्व आदि। तत्त्व शब्द व्यापकता लिए हुए है। यह अपनी समस्त जाति में एक-सा ही रहता है, जैसे-स्वर्णत्व। यह सभी स्वर्ण जाति में एक-सा ही व्याप्त है भले ही स्वर्ण अलग-अलग हों। इसी प्रकार जीवत्व है। यह भी सभी जीवों में एक-सा ही व्याप्त है भले ही जीव अनेक हों। इसी प्रकार अजीव, आस्रव आदि तत्त्वों के विषय में भी जाना जा सकता है। जैनदर्शन में प्रत्येक पदार्थ के यथार्थ स्वरूप को समझने के लिए दो दृष्टियाँ बतायी गई हैं-एक द्रव्य, यानी सामान्य दृष्टि और दूसरी भाव (पर्याय), यानी विशिष्ट दृष्टि। प्रत्येक पदार्थ इन दोनों से समन्वित है। पदार्थ के यथार्थ स्वरूप की विधिवत् जानकारी के लिए जैनदर्शन का सामान्य-विशेष का सिद्धान्त सर्वव्यापी है। पाश्चात्य जगत् में इसे 'जनरल एण्ड स्पेशल थ्योरी' (G. S. Theory-जी. एस. थ्योरी) कहते हैं। यह सभी पदार्थों के जानने के लिए प्रयोग में लायी जाती है।
SR No.002470
Book TitleAgam Gyan Ki Adharshila Pacchis Bol
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVarunmuni
PublisherPadma Prakashan
Publication Year2011
Total Pages192
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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