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________________ आगमज्ञान की आधारशिला : पच्चीस बोल * ८७ * को अमुक्त और अमुक्त को मुक्त आत्मा समझना मिथ्यात्व है। इसे हम इस प्रकार भी समझ सकते हैं कि सिद्ध आत्माओं को बद्ध मानना और जो आत्माएँ सिद्ध नहीं हैं, जिन्होंने सिद्धत्व प्राप्त नहीं किया है, जो वीतरागी नहीं हैं उन्हें सिद्ध आत्माएँ मानना, उनकी पूजा-अर्चना करना, उनसे मनौती माँगना ये सब मिथ्यात्व है। __ जैनदर्शन का यह सर्वविदित सिद्धान्त है कि प्रत्येक व्यक्ति अपने कर्मों का भोक्ता होता है और अपने ही कर्मों का कर्ता होता है। कोई परकीय शक्ति उसका न तो कुछ बिगाड़ सकती है और न बना सकती है। प्रत्येक व्यक्ति स्वयं परमात्मा बन सकता है। उसमें परमात्मा बनने की शक्ति विद्यमान है। वह किसी अखण्ड सत्ता या शक्ति-विशेष का अंश नहीं होता है, वह अपने आप में पूर्ण व स्वतन्त्र होता है, ऐसी मान्यता पर श्रद्धान न कर परमात्मा से कुछ माँगना, मनौती मनाना आदि ये सब मिथ्यात्व का पोषण है। (आधार : स्थानांग १०) प्रश्नावली १. मिथ्यात्व किसे कहते हैं? समझाइए। २. मिथ्यात्व के कितने भेद हैं? इन भेदों का आधार क्या है? ३. मिथ्यात्व और सम्यक्त्व में क्या अन्तर है? ४. साधु का क्या लक्षण है? असाधु को साधु मानना मिथ्यात्व का कौन-सा भेद ५. मार्ग से क्या तात्पर्य है? मार्ग और कुमार्ग के अन्तर को स्पष्ट कीजिए। ६. आत्मा की मुक्ति होने में कौन-सी प्रधान बाधा है? उस बाधा के स्वरूप पर प्रकाश डालिए। ७. निम्न को बताइये (क) क्या परमात्मा से मनौती मनाना मिथ्यात्व है? (ख) कौन-सा धर्म धर्म है और कौन-सा अधर्म? (ग) जीव का प्रधान लक्षण क्या है? (घ) बन्ध का प्रमुख हेतु क्या है?
SR No.002470
Book TitleAgam Gyan Ki Adharshila Pacchis Bol
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVarunmuni
PublisherPadma Prakashan
Publication Year2011
Total Pages192
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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