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________________ भाषाटीकासमेतः । . (७१) एकमेव सदनेककारणं कारणान्तरनिरास्य कारणम्। कार्यकारणविलक्षणं स्वयं ब्रह्म तत्त्वमसि भावयात्मनि ॥२६१ ॥ स्वयं एकही होकर अनन्तानन्त जगतका कारण और दूसरे कार णका नाश करनेमें कारण और कार्य कारणसे विलक्षण जो स्वयं ब्रह्म है सो तुम्हीं हो ॥ २६१ ॥ निर्विकल्पकमनल्पमक्षरं यत् क्षराक्षरविलक्षणं परम् । नित्यमव्ययसुखं निरञ्जनं ब्रह्मतत्त्वमसि भावयात्मनि ॥ २६२॥ विकल्पसे रहित सर्वव्यापक नाशरहित क्षर अक्षरसे विलक्षण नित्य अव्यय सुखस्वरूप निर्मल जो परब्रह्म है सो तुम्ही हौ ॥ २६२ ॥ यद्विभाति सदनेकधा भ्रमात्रामरूपगुणविक्रियात्मना । हेमवत्स्वयमविक्रियं सदा ब्रह्म तत्त्वमसि भावयात्मनि ॥ २६३ ॥ जैसे सुवर्ण अपने विकाररहित तो है परन्तु भ्रमसे कटक कुण्डल आदि नानाप्रकारके रूप नामको प्राप्त होता है तैसे जो परब्रह्म स्वयं विकाररहित एक है तथापि भ्रमसे अनेक तरहका नाम, रूप, गुण क्रिया रूपसे अनन्तानन्त मालूम होता है वह ब्रह्म तुम्ही हो॥२६३।। यच्चकास्त्यनपरं परात्परं प्रत्यगेकरसमात्मलक्षणम् । सत्यचित्सुखमनन्तमव्ययं ब्रह्म तत्त्वमसि भावयात्मनि ॥ २६४॥ प्रकृति आदिसे परे प्रत्यक्ष एकरस आत्मस्वरूप सत्य चित्स्वरूप मुखात्मक अनन्त अव्यय जो परब्रह्म सो तुम्ही हो ॥ २६४ ॥
SR No.002468
Book TitleVivek Chudamani Bhasha Tika Samet
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrashekhar Sharma
PublisherChandrashekhar Sharma
Publication Year
Total Pages158
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, G000, & G999
File Size12 MB
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