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________________ भाषाटीकासमेतः। । (६९) साक्षात् आत्मा है इसलिये वही प्रशांत निर्मल अद्वितीय परब्रह्म तुम हो ॥ २५३ ॥ निद्राकल्पितदेशकालविषयज्ञात्रादि सर्व यथा मिथ्या तद्वदिहापि जायति जगत्स्वाज्ञानकायं त्वतः । यस्मादेवमिदं शरीरकरणप्राणाहमाद्यप्यसत्तस्मात्तत्त्वमसि प्रशान्तममलं ब्रह्माद्वयं यत्परम् ॥२५४॥ जैसे निद्राकल्पित देश काल सम्पूर्ण विषय ज्ञान ज्ञाता आदि सब मिथ्या हैं तैसेही जाग्रत् अवस्थामें अपनी अज्ञानतासे कल्पित यह जगत् मिथ्या है इसी तरहसे यह शरीर और इन्द्रिय गण प्राण और अहंकार आदि सब मिथ्या हैं जब ये सब मिथ्या हुवे तो वही शान्त• स्वरूप निर्मल अद्वितीय परब्रह्म तुम हौ ।। २५४ ।। जातिनीतिकुलगोत्रदूरगं नामरूपगुणदोषवर्जितम् । देशकालविषयातिवति यदब्रह्म तत्त्वमसि भावयात्मनि ॥ २५५॥ ब्राह्मण आदि जाति और ऐसा करना ऐसा न करना यह नीति कुल गोत्र इन सबसे रहित तथा नाम रूप गुण दोष इन सबसे वर्जित देश काल विषय आदिसे अलग जो परब्रह्म है वहीं ब्रह्म तुम हो उसी ब्रह्मको अपने में भावना करो ॥ २५५ ॥ यत्परं सकलरागगोचरं गोचरं विमलबोधचक्षुषः । शुद्धचिद्धनमनादि वस्तु यद्ब्रह्म तत्त्वमसि भावयात्मनि ॥२५६ ॥ सकल रागगोचर अर्थात् प्रेमास्पद तथा विमल जो बोधरूप नेत्र उसके गोचर शुद्ध चैतन्य घन अनादि वस्तु जो परब्रह्म है वही ब्रह्म तुम हो ऐसा अपनेको अपनेमें विचार किया करो ॥ २५६॥ . क्षषः । शुद्धावान ॥२५६ ॥ल जो बोधरूप नत्र
SR No.002468
Book TitleVivek Chudamani Bhasha Tika Samet
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrashekhar Sharma
PublisherChandrashekhar Sharma
Publication Year
Total Pages158
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, G000, & G999
File Size12 MB
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