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________________ भाषाटीकासमेतः। .. (५९) देहं धियं चित्प्रतिविश्वमेव विसृज्य बुद्धौ निहितं गुहायाम् । द्रष्टारमात्मानमखण्डबोधं सर्वप्रकाशं सदसद्विलक्षणम् ॥२२२॥ . नित्यं विभुं सर्वगतं सुसूक्ष्ममन्तर्बहिः शून्यमनन्यमात्मनः । विज्ञाय सम्यनिजरूपमेतत्पुमान्विपाप्मा विरजो विमृत्युः ॥ २२३॥ तैसे देह व बुद्धि व बुद्धिरूप गुहामें पड़ा हुआ चैतन्यका प्रतिबिम्ब . इन तीनोंको छोडकर सर्वज्ञ सर्वद्रष्टा सबका प्रकाशक स्थूल सूक्ष्म . जगत्से विलक्षण नित्य व्यापक सबके अंतर्गत मूक्ष्मरूप अन्तर बाह्यसे । रहित ऐसे समीचीन आत्मस्वरूपको जानकर मनुष्य पापसे रहित निर्मलही जन्म मरणसे छूटजाता है ॥ २२२ ।। २२३ ॥ विशोक आनन्दघनो विपश्चित्स्वयंकुतश्चित्रविभेति कश्चित् । नान्योऽस्ति पन्था भव बन्धमुक्तेविन्यस्व तत्त्वावगमं मुमुक्षोः ॥ २२४ ॥ आत्मस्वरूपके जाननेसे विद्वान् शोक रहित आनन्दसंयुक्त होकर निर्भय होते हैं इसलिये मुमुक्षु पुरुषोंको भवबन्धनसे मुक्त होनेका उपाय आत्मतत्त्व ज्ञानके विना दूसरा नहीं है ॥ २२४॥ ब्रह्माभिन्नत्वविज्ञानं भवमोक्षस्य कारणम् । येनाद्वितीयमानन्दं ब्रह्म संपद्यते बुधैः ॥ २२५ ॥ ब्रह्मसे अपनेको अभिन्न अर्थात् मैं ब्रह्महूं ऐसा ज्ञान होना यही भवबन्धसे मुक्त होनेका कारण है जिस ब्रह्मज्ञान होनेसे आनन्दस्वरूप अद्वितीय ब्रह्मको विद्वान्लोग प्राप्त होते हैं ॥ २२५ ॥ ब्रह्मभूतस्तु संमृत्यै विद्वान्नावर्त्तते पुनः । विज्ञातव्यमतः सम्यग्ब्रह्माभिन्नत्वमात्मनः ॥ २२६॥
SR No.002468
Book TitleVivek Chudamani Bhasha Tika Samet
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrashekhar Sharma
PublisherChandrashekhar Sharma
Publication Year
Total Pages158
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, G000, & G999
File Size12 MB
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