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________________ (५६) विवेकचूडामणिः। सुषुप्ति अवस्थामें आनन्दमयकोशकी समीचीनरीतिसे स्फूर्ति होती . है जाग्रत् अवस्था और. स्वप्नावस्थामें इष्टवस्तुके दीखनेसे किंचित् आनन्दमय कोशकी स्फूर्ति होती है ॥ २१० ॥ नैवायमानन्दमयः परात्मा सोपाधिकत्वात्प्रकृतेविकारात् । कार्य्यत्वहेतोः सुकृतक्रियाया विकारसंघातसमाहितत्वात् ॥ २११ ॥ आनन्दमयकोश उपाधिसंयुक्त है और प्रकृतिका विकार है और सुकृत क्रियाका जो कार्य उसका कारण है और विकारसमूह संयुक्त है इसलिये आनन्दमयकोश परमात्मा नहीं है, आत्मा तो इन सब हेतुओंसे रहित है ॥ २११॥ पञ्चानामपि कोशानां निषेधे युक्तितः श्रुतेः। तनिषेधावधिः साक्षी बोधरूपोवशिष्यते ॥ २१२ ॥ युक्तियोंसे और श्रुतियोंसे पंचकोशमें जो आत्मबुद्धि फैलरही है उसके निषेध करनेसे चैतन्यस्वरूप केवल साक्षी परमात्मा अवशेष रहजाता है ॥ २१२ ॥ योऽयमात्मा स्वयंज्योतिः पञ्चकोशविलक्षणः । अवस्थात्रयसाक्षी सन्निविकारो निरंजनः। सदानन्दः सविज्ञेयः स्वात्मत्वेन विपश्चिता॥२१३॥ पञ्चकोशसे विलक्षण स्वयं प्रकाशस्वरूप जो यह आत्मा है सो जाग्रत, स्वप्न, सुषुप्ति इन तीनों अवस्थाका साक्षी निर्मल निर्विकार सदा आनन्दरूप है ऐसा आत्मरूपसे विद्वानको समझना चाहिये ॥२१३॥ शिष्यउवाच । मिथ्यात्वेन निषिद्धेषु कोशेष्वेतेषु पञ्चसु । सर्वाभावं विना किञ्चिन पश्याम्यत्र हे गुरो। विज्ञेयं किमुवस्त्वस्ति स्वात्मनात्मविपश्चिता २१४॥
SR No.002468
Book TitleVivek Chudamani Bhasha Tika Samet
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrashekhar Sharma
PublisherChandrashekhar Sharma
Publication Year
Total Pages158
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, G000, & G999
File Size12 MB
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