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भूमिका। अध्यात्म विद्याका सिद्धान्त लिखा जाय जिसके देखनेसे साधारण
म न भी आत्म अनात्मका विवेक सुगम साध्य होजाय इस विचारसे श्रीस्वारा आचार्य शिष्य संवादका बहानासे विवेकचूडामणि नामक यह ग्रंथ बनाया
जो कुछ हो, मेरे समझमें सहज थोडा श्लोक मनोहर छन्द स्वच्छ विषय प्रसिद्ध दृष्टान्त संयुक्त जैसा यह ग्रंथ बना है ऐसा ग्रन्थ आत्मविद्याका विरल है।
ऐसा उत्तम इस ग्रन्थका परम आनन्द विद्वान् लोग तो लूटते ही हैं पर जिन लोगोंने संस्कृत विद्यामें कम परिश्रम किया है वह लोग भी इस ग्रंथके परमानन्दको अनुभव करें इसलिये तथा विशेष शास्त्र मर्यादा प्रतिपालक सनात;धर्मानुरागिणी श्रीमतीमहारानी साहेब सुरसडके चित्त प्रसादनकै निमित्त मैंने इस ग्रंथका देशीभाषामें अनुवाद करना स्वीकार किया । यद्यपि इस माया अनुवादमें प्रमाद प्रयुक्त कतिपय जगह न्यूनाधिक हुआ होगा तथापि गुणकपक्षपाती बुद्धिमान् लोग अपना मतलब निकालही लेंगे.
इस मेरे लेखको भाषा समझकर विद्वानोंको देखनेमें संकोच न होनेके कारण मूलश्लोक भी मध्य मध्यमें लिखदिये हैं जिसके देखनेक बहानेसे मी मेरा के विद्वानोंके दृष्टिगोचर होजायगा तो भी मेरा श्रम सफल होगा-इति प्रार्थना ।
माझाधिप श्रीमद्वाबू हरिहरेन्द्र साहि
कृपापात्र रामपुर ग्रामनिवासी प्रणत पण्डित चन्द्रशेखरशर्मा।