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________________ ( १४८ ) विवेकचूडामणिः । देहस्य मोक्षो नो मोक्षो न दण्डस्य कमण्डलोः । अविद्या हृदयग्रन्थिमोक्षो मोक्षो यतस्ततः ॥ ५५९ ॥ देहका मोक्ष होना मोक्ष नहीं है और दण्डकमण्डलुका त्याग करनाभी मोक्ष नहीं है किन्तु जिससे अज्ञानरूप जो हृदयकी ग्रंथि है उस ग्रन्थिका मोक्ष होना वही मोक्ष है ।। ५५९ ॥ कुल्यायामथ नद्यां वा शिवक्षेत्रेऽथ चत्त्वरे । पतति चेत्तेन तरोः किन्नु शुभाशुभम् ॥५६० ॥ किसी तालाब में चाहे किसी नदीमें चाहे काशीक्षेत्र में अथवा कोई अच्छे चौतरेपर कहीं भी वृक्षका पत्र पतित हा परन्तु उस पत्रके गिरनेसे वृक्षका कोई हानि लाभ नहीं हैं तैसे ब्रह्मज्ञानीका शरीर चाहे कहीं पतित हो पर ज्ञानीको इसमें कोई हर्षविषाद नहीं होता ॥ ५६० ॥ पत्रस्य पुष्पस्य फलस्य नाशवदेहेन्द्रियप्राणधियां विनाशः । नैवात्मनः स्वस्य सदात्मकस्यानन्दाकृतेर्वृक्षवदस्ति चैषः ॥ ५६१ ॥ जैसे पत्र और पुष्प और फलका नाश होनेसे वृक्षका नाश नहीं होता तैसे देह इन्द्रिय प्राण बुद्धि इनसबका नाश होनेसे भी आनन्दरूप आत्माका कभी नाश नहीं होता ।। ५६१ ॥ प्रज्ञानघन इत्यात्मलक्षणं सत्यसूचकम् । अविद्योपाधिकस्यैव कथयन्ति विनाशनम् ॥ ५६२॥ सत्यका सूचक जो प्रज्ञानघन यह विशेषण है सो आत्मलक्षणका अनुवाद करि उपाधिहीके नाशको कथन करता है ॥ ५६२ ॥ अविनाशो वाऽरेयमात्मेति श्रुतिरात्मनः । प्रब्रवीदविनाशित्वं विनश्यत्सु विकारिषु ॥ ५६३ ॥ विकारी जो देह आदि स्थूल सूक्ष्म पदार्थ हैं इन सबका नाश होनेसे भी आत्माका नाश नहीं होता है यत्नवान ( अविनाशो वारेऽयमात्मा ) यह श्रुति स्पष्ट आत्माको अविनाशी कहती है ॥ ५६३ ॥
SR No.002468
Book TitleVivek Chudamani Bhasha Tika Samet
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrashekhar Sharma
PublisherChandrashekhar Sharma
Publication Year
Total Pages158
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, G000, & G999
File Size12 MB
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