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भाषाटीकासमेतः। जिस पुरुषके वैराग्य और मोक्षकी इच्छा ये दोनों तीव्र हैं उसी पुरुषमें शम दम आदि आत्म बोधका उपाय सार्थक होकर आत्मज्ञानरूप फलको देता है ॥ ३०॥ एतयोर्मन्दता यत्र विरक्तत्वमुमुक्षयोः।। मरौ सलिलवत्तत्र शमादेर्भानमात्रता ॥३१॥
जिस पुरुषमें वैराग्य और मोक्षकी इच्छा ये दोनों मन्द हैं उस पुरुषमें शम दम आदि उपाय मरु देशके जल समान निष्फल होते है । अर्थात् मरु देशमें वृष्टि होतेही जल सूख जाता है उस जलमें कुछ भी काम नहीं चलता तैसे वैराग्य विना शम दम आदि उपाय निष्फल होते हैं.॥ ३१ ॥ मोक्षकारणसामय्यां भक्तिरेव गरीयसी । स्वस्वरूपानुसंधानं भक्तिरित्यभिधीयते ॥ ३२॥
मोक्षसाधनमें जितनी सामग्री है उसमें सबसे श्रेष्ठ भक्ति है भक्ति उसीको कहते हैं जो आत्मस्वरूपका ध्यान करना अथवा रामकृष्ण आदि सगुण ब्रह्मके रूपको सदा चित्तमें चिन्तन करना ॥ ३२ ॥ स्वात्मतत्त्वानुसंधानं भक्तिरित्यपरे जगुः ॥ ३३ ॥
किसीका मत है कि आत्मस्वरूपमें रात दिन चित्तको लगाये रहना यही भक्ति है ॥ ३३ ॥
उक्तसाधनसंपन्नस्तत्त्वजिज्ञासुरात्मनः।। उपसीदेद्गुरुं प्राज्ञं यस्माद्बन्धविमोक्षणम् ॥ ३४ ॥ • उक्त साधन चतुष्टय आदिमें सम्पन्न आत्मतत्त्वको जिज्ञासा करने वाला अधिकारीको ब्रह्मनिष्ठ विद्वान् गुरुके शरणमें जाना उचित है जिसके अनुग्रहसे संसाररूप बन्धनसे मोक्ष होता है ॥ ३४ ॥
श्रोत्रियोऽवृजिनोऽकामहतो यो ब्रह्मवित्तमः। ब्रह्मण्युपरतः शान्तो निरिन्धन इवानलः ॥ ३५॥