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________________ भाषाटीकासमेतः । ( १४१ ) करता है उनकी वासनाको त्याग करना और मौनका धारण करना इससे अधिक दूसरा कुछ सुखदायक नहीं है ॥ ५२८ ॥ गच्छंस्तिष्ठनुपविशञ्छयानो वान्यथापि वा । यथेच्छया वसेद्विद्वानात्मारामः सदा मुनिः ५२९॥ विद्वान् मुनिलोगोंको उचित है जो चलते खडे होते बैठते सोते हुवे सर्वथा आत्माराम होकर यथेष्टाचरणसे वास करें ।। ५२९ ॥ न देशकालासन दिग्यमादिलक्ष्याद्यपेक्षाप्रतिबवृत्तेः । संसिद्धतत्त्वस्य महात्मनोऽस्ति स्ववेदने का नियमाद्यवस्था ॥ ५३० ॥ जिस महात्माका आत्मतत्त्व सिद्ध हुआ और चित्तकी वृत्ति प्रतिबद्ध हुई उसके लिये देश, काल, आसन, दिशा, यम, नियम आदि ध्यानकी सामग्री अपेक्षित नहीं है क्योंकि यम, नियम आदिका फल ब्रह्मज्ञान है सो ज्ञान यदि होगया तो ये सब व्यर्थ ही हैं ॥ ५३० ॥ घटोयमिति विज्ञातुं नियमः कोन्ववेक्षते । विना प्रमाणसुष्टुत्वं यस्मिन्सति पदार्थधीः॥५३१॥ जैसा यह घट है ऐसा ज्ञान होनेके लिये किसी नियमकी अपेक्षा नहीं होती तैसे प्रमाण सौष्ठव के बिना भी सत् ब्रह्मके बोध होनेसे पदार्थ बुद्धि होती है ॥ ५३१ ॥ अयमात्मा नित्यसिद्धः प्रमाणे सति भासते । न देशं नापि वा कालं न शुद्धिं वाप्यपेक्षते ५३२ ॥ प्रमाण रहनेसे यह आत्मा नित्य सिद्ध मालूम होता है और देशकाल शुद्धि इन सबकी अपेक्षा आत्मज्ञान होनेपर नहीं होती ५३२ देवदत्तोहमित्येतद्विज्ञानं निरपेक्षकम् । तद्वद्ब्रह्मविदोऽप्यस्य ब्रह्माहमिति वेदनम् ॥ ९३३ ॥
SR No.002468
Book TitleVivek Chudamani Bhasha Tika Samet
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrashekhar Sharma
PublisherChandrashekhar Sharma
Publication Year
Total Pages158
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, G000, & G999
File Size12 MB
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