SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 145
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ भाषाटीकासमेतः। (१३९) परमतत्वको जानकर आत्मसुखको प्राप्त जो शिष्यवर उसकी ऐसी नम्रता देखकर प्रसन्न हृदयसे उपदेष्टा महात्मा श्रीगुरुमहाराज फिर यह वचन बोले ॥ ५२१॥ ब्रह्मप्रत्ययसन्नतिर्जगदतो ब्रह्मैव सत्सर्वतः पश्याध्यात्मदृशा प्रशान्तमनसा सर्वास्ववस्थास्वपि । रूपादन्यदवेक्षितं किमभितश्चक्षुष्मतां दृश्यते तद्ब्रह्मविदः सतः किमपरं बुद्धविहारास्पदम् ॥ ५२२॥ हे शिष्य ! प्रशान्त मन होकर आत्मदृष्टिसे सब अवस्थाओंमें देखो कि, ब्रह्म प्रत्ययका संतान सब जगत् है इसलिये सब ब्रह्ममय है जैसा नेत्रसे चारोंतरफ देखनेसे नेत्रवान् पुरुषोंको रूपसे अन्य दूसरा कुछ नहीं दीखता तैसे ब्रह्मज्ञानीको सच्चिदानन्द परब्रह्मसे भिन्न बुद्धिका विहारस्थान दूसरा कुछ नहीं है ॥ ५२२ ॥ . कस्तां परानन्दरसानुभूतिमुत्सृज्य शून्येषु रमेत विद्वान् । चन्द्रे महाह्लादिनि दीप्यमाने चित्रेन्दुमालोकयितुं क इच्छेत् ।। ५२३ ॥ कौन ऐसा विद्वान् होगा जो परमानन्दरसका अनुभव छोडकर मिथ्या विषयोंमें रमण करेगा जैसे परमप्रकाशक सुखप्रद चन्द्रमाका दर्शन छोडकर कौन ऐसा मनुष्य होगा जो शित्रका लिखा चन्द्रमाको देखेगा ॥ ५२३ ॥ असत्पदार्थानुभवेन किंचिन्नास्ति तृप्तिर्न च दुःखहानिः । तदद्वयानन्दरसानुभूत्या तृप्तः सुखं तिष्ठ सदात्मनिष्ठया ॥ ५२४ ।। असत् पदार्थोंके अनुभव करनेसे न तृप्ति होगी न दुःखका नाशही
SR No.002468
Book TitleVivek Chudamani Bhasha Tika Samet
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrashekhar Sharma
PublisherChandrashekhar Sharma
Publication Year
Total Pages158
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, G000, & G999
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy