SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 134
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ( १२८ ) विवेकचूडामणिः । अनुमान से अर्थात् बन्धआदिसे युक्त पुरुषकी चेष्टा दीखनेसे ज्ञान होता है || ४७६ ॥ तटस्थता बोधयन्ति गुरवः श्रुतयो यथा । प्रज्ञयैव तरेद्विद्वानीश्वरानुगृहीतया ॥ ४७७ ॥ जैसे श्रुति अलग शब्दद्वारा पुरुषको बोध कराती है तैसे गुरुभी तटस्थ होकर बोध कराते हैं इसलिये ईश्वरका अनुग्रह युक्त केवल अपनी बुद्धिसे मनुष्य संसारको तरते हैं || ४७७ ॥ स्वानुभूत्या स्वयं ज्ञात्वा स्वमात्मानमखण्डि - तम् । संसिद्धः सम्मुखं तिष्ठेन्निर्विकल्पात्मना - त्मनि ॥ ४७८ ॥ अपने अनुभव से अखण्ड आत्माको स्वयं जानकर सिद्धपुरुषका विकल्प रहित आत्मामें संमुख वर्त्तमान रहना उचित है ॥ १७८ ॥ वेदान्तसिद्धान्त निरुक्तिरेषा ब्रह्मैव जीवः सकलं जगच्च । अखण्डरूपस्थितिरेव मोक्षो ब्रह्माद्वितीये श्रुतयः प्रमाणम् ॥ ४७९ ॥ सम्पूर्ण जगत् और जीव ये सब ब्रह्मस्वरूपही हैं ऐसी वेदान्तकी सिद्धान्तउक्ति है और अद्वितीय ब्रह्ममें अखण्डरूपसे अर्थात् भेदशून्य स्थिर रहना यही मोक्ष है इसमें भी बहुतसी श्रुतियां प्रमाण हैं ॥ ४७९ ॥ इति गुरुवचनाच्छुतिप्रमाणात्परमवगम्य सतत्त्वमात्मयुक्त्या । प्रशमितकरणः समाहितात्मा क्वचिदचलवृत्तिरात्मनिष्ठितोऽभूत् ॥ ४८० ॥ श्रुतियोंका प्रमाणयुक्त इस पूर्वउक्तगुरुका वचनसे और अपनी युक्तिसे परमात्मतत्त्वको जानकर और इन्द्रियोंको निग्रह करके चित्तवृत्तिको निरोध करनेसे निश्चलदेह होकर आत्मामें निष्ठा करो ॥ ४८० ॥
SR No.002468
Book TitleVivek Chudamani Bhasha Tika Samet
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrashekhar Sharma
PublisherChandrashekhar Sharma
Publication Year
Total Pages158
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, G000, & G999
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy