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________________ ( १२२ ) विवेकचूडामणिः । व्याघ्रबुद्धया विनिर्मुक्तो बाणः पश्चात्तु गोमतौ । न तिष्ठति च्छिनत्येव लक्ष्यं वेगेन निर्भरम् ४५३ ॥ व्याघ्रबुद्धिसे बाण छोडा गया पश्चात् व्याधाकी गोबुद्धि होनेसे वह बाण मध्यमें नहीं रुकता लक्ष्यको घात करताही है तैसे अज्ञान दशामें जो कर्म किया उस कर्मका फल समान ज्ञान होने परभी भोगना पडेगा ॥ ४५३ ॥ प्रारब्धं बलवत्तरं खलु विदां भोगेन तस्य क्षयः सम्यग् ज्ञान हुताशनेन विलयः प्राक्संचितागामिनम्। ब्रह्मात्मैक्यमवेक्ष्य तन्मयतया ये सर्वदा संस्थितास्तेषां तत्त्रितयं न हि कचिदपि ब्रह्मैव त निर्गुणम् ॥ ४५४ ॥ ज्ञान तीन प्रकारका है सामान्यज्ञान, सम्यक्ज्ञान, ब्रह्मात्मैक्यज्ञान कर्मभी तीन प्रकारका है संचितकर्म, प्रारब्धकर्म, आगामी कर्म, इनसबोंमें अज्ञान दशामें तीनों कर्मका फल भोगना पडता है सामान्य ज्ञान होनेपरभी बलवान् जो प्रारब्धकर्म है उसका नाश भोगनेही से होता है । और सम्यक ज्ञानरूप अग्निके प्रज्वलित होनेसे पूर्वसंचितकर्म तथा आगामी कर्मकाभी लय होता है, जो मनुष्य ब्रह्मात्मज्ञान होनेसे ब्रह्ममय होकर सदा स्थिर रहते है उन ब्रह्मज्ञानियोंका तीनों प्रकारका कर्म नष्ट हो जाता है किसी प्रकार कर्म फलको भोगना नहीं पडता क्योंकि वह केवल निर्गुण ब्रह्मही है ॥ ४५४ ॥ उपाधितादात्म्यविहीनकेवलब्रह्मात्मनैवात्मनि तिष्ठतो मुनेः । प्रारब्धसद्भावकथा न युक्ता स्वप्नार्थसंबन्धकथेव जाग्रतः ॥ ४५५ ॥ जैसे स्वंम समय में जो विषयोंका इन्द्रियोंसे संबन्ध होता है वह संबन्ध जागने पर नष्ट हो जाता है तैसे देह आदि उपाधियोंका तादात्म्य भाव
SR No.002468
Book TitleVivek Chudamani Bhasha Tika Samet
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrashekhar Sharma
PublisherChandrashekhar Sharma
Publication Year
Total Pages158
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, G000, & G999
File Size12 MB
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