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भाषाटीकासमेतः। (९७) मिट्टीका घर बनाकर एक किसी कीडाको बन्द करदेताहै और सूक्ष्म . छिद्रसे अपना भनभनाहटशब्द सुनाय अपने डंकोंसे उस कीडाको पीडा दियाकरता है फिर उडके अपने अलग चलाजाताहै तो भी वह कीडा भयसे भ्रमरका रूप और शब्दको अनुक्षण ध्यान किया करता है ऐसे निरंतर ध्यान करनेसे कुछ दिनके बाद वह कीडा भ्रमर स्वरूप होजाता है तैसे निरन्तर ईश्वरके ध्यान करनेसे मनुष्यभी ईश्वररूप ही होजाता है ॥ ३५९ ॥ क्रियान्तराऽऽसक्तिमपास्य कीटको ध्यायनलित्वं ह्यलिभावमृच्छति। तथैव योगी परमात्मतत्त्वं ध्यात्वा समायाति तदैकनिष्ठया ॥ ३६० ॥ जैसे दूसरी क्रियाशक्तिको छोडकर केवल भ्रमरका ध्यान करनेसे कीडा भ्रमरके रूपको प्राप्त होजाता है तैसे एकत्र चित्त करि केवल परमात्मतत्त्वको ध्यान करनेसे योगी ब्रह्मस्वरूपको प्राप्त होताहै ३६०
अतीव सूक्ष्मं परमात्मतत्त्वं न स्थूलदृष्टया प्रतिपत्तुमर्हति । समाधिनात्यन्तसुसूक्ष्मवृत्त्या ज्ञातव्यमार्यैरतिशुद्धबुद्धिभिः ॥ ३६१ ॥
परमात्मतत्त्व अतिसूक्ष्म है स्थूल दृष्टिसे कोई निश्चय नहीं करसकता इस लिये चित्तवृत्तिको निरोध करि अत्यन्त सूक्ष्मवृत्ति और अतिशुद्धबुद्धिसे आर्यलोगोंका आत्मवस्तुको ज्ञान करना चाहिये॥३६१॥
यथा सुवर्णं पुटपाकशोधितंत्यत्वा मलं स्वात्मगुण समृच्छति । तथामनः सत्त्वरजस्तमोमलं ध्यानेन संत्यज्य समेति तत्त्वम् ॥ ३६२ ॥ जैसे सुवर्णमें दूसरा कोई धातुके मिलजानेसे सुवर्णका यथार्थगुण नष्ट होजाता है यदि अग्निमें अच्छे तरहसे शोधाजाय तो मलको