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तीर्थंकर : एक अनुशीलन 8 74
जिज्ञासा - अगर तीर्थंकर को चक्रवर्ती पद भी प्राप्त हो, तो क्या उसे भी अट्ठम तप करना पड़ता है।
समाधान - सामान्य चक्रवर्ती छह खंड को साधने के लिए तेरह तेले करता है। किन्तु अगर तीर्थंकर चक्रवर्ती हो तो उसे छह खण्ड साधने ही नहीं पड़ते। वे स्वयमेव उनके स्वामित्व में आ जाते हैं। अतः उन्हें अट्टम करने की आवश्यकता नहीं पड़ती।
जिज्ञासा - क्या तीर्थंकर गृहस्थावस्था में अवधिज्ञान का प्रयोग करते हैं ?
समाधान - सामान्य रूप से तीर्थंकर परमात्मा अपने अवधिज्ञान का उपयोग गृहस्थ अवस्था में नहीं करते हैं, किन्तु परिस्थिति विशेष में आवश्यकता प्रतीत होने पर वे अवधिज्ञान का उपयोग कर लेते हैं। उदाहरणत: श्री पार्श्वनाथ जी एवं श्री महावीर स्वामी जी।
1. वाराणसी नगरी के बाहर कमठ नाम का तापस आया। पंचाग्नि तापने वाले उस तापस की पूजा करने के लिए अनेक लोग जाने लगे। पार्श्वकुमार ने लोगों को जाते हए देखा व कारण पूछा। भगवान भी वहाँ गए। वहाँ अवधिज्ञान से प्रभ ने देखा कि जलती हुई लकड़ी में सर्प भी जल रहा है। पार्श्वकुमार बोले कि मूढ तपस्वी! तू दयारहित वृथा कष्ट क्यों कर रहा है ? तेरी सब मेहनत व्यर्थ है। कमठ क्रोधित हो उठा। बहस करने लगा। प्रभु ने अग्निकुंड में से जलती लकड़ी बाहर निकलवाई और अर्धव्याकुल सर्प को निकाला। नवकार मंत्र का श्रवण कर वह सर्प मरकर व्यंतर निकाय में धरणेन्द्र देव बना।
2. तीर्थंकर महावीर जब माता त्रिशला के गर्भ में थे, तब उन्हें लगा कि मेरे हलन चलन से माता को कष्ट होता है, तो उन्होंने हिलना-डुलना बंद कर दिया। इससे माता द्रवित हुई, शोकाकुल हुई। प्रभु ने अवधिज्ञान का प्रयोग किया और माता के दुख का कारण जाना तो उन्हें पता लगा कि उनका निर्णय ही उनके दुख का कारण बना है, तो उन्होंने हलन चलन प्रारंभ किया।
___ इस प्रकार समयानुसार तीर्थंकर गृहस्थ में रहकर अवधिज्ञान का सीमित उपयोग कर सकते हैं, इसमें बाधा नहीं है।
ब्रह्मचर्य-उत्तम तप, नियम, ज्ञान, श्रब्दा, चारित्र, सम्यक्त्व और विनय का मूल है।
- प्रश्नव्याकरण सूत्र (2/4)