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________________ . तीर्थंकरों का अतुल बल रूप, लावण्य में तीर्थंकर जितने कान्तिमान होते हैं, वे उससे कहीं अधिक बलवान होते हैं। शारीरिक बलिष्ठता के साथ-साथ वे अदम्य-अतुल बल के धारक होते हैं, जो किसी भी सामान्य व्यक्ति से कोटि गुणा अधिक होता है। शास्त्रों में लिखा है जं केसवस्स उ बलं, तं दुगुण होइ चक्कवट्टिस्स। ततो बला बलवगा अपरिमियबला जिणवरिन्दा॥ अर्थात् - एक वासुदेव में 20 लाख अष्टापद (एक विशेष पशु) का एवं चक्रवर्ती में 40 लाख अष्टापदों के जितना बल है। किन्तु तीर्थंकर भगवन्त का बल तो अदम्य अपरिमित है। (आवश्यक नियुक्ति) इस ही की व्याख्या करते हुए कल्पसूत्र की टीका में लिखा है - 12 पुरुषों का बल एक साँड में होता है। 10 साँडों का बल एक पाडा में होता है। 10 साँडों का बल एक घोड़े में होता है। 1000 घोड़ों का बल एक हाथी में होता है। 500 हाथियों का बल एक सिंह में होता है। 500 सिंहों का बल एक शार्दूल में होता है। 10,000 शार्दूलों का बल एक अष्टापद में होता है। 10,000 अष्टापदों का बल एक बलदेव में होता है। 2 बलदेवों का बल एक चक्रवर्ती में होता है। 1 करोड़ चक्रवर्तियों का बल एक कल्पवासी देव में होता है। 1 करोड़ कल्पवासी देवों का बल एक इन्द्र में होता है। ऐसे अनन्त इन्द्रों का बल एक तीर्थंकर में होता है। घाव को अधिक खुजलाना ठीक नहीं है, क्योंकि खुजलाने से घाव ज्यादा फैलता है। - सूत्रकृताङ्ग (1/3/3/13)
SR No.002463
Book TitleTirthankar Ek Anushilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurnapragnashreeji, Himanshu Jain
PublisherPurnapragnashreeji, Himanshu Jain
Publication Year2016
Total Pages266
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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