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________________ तीर्थंकर : एक अनुशीलन 869 जिज्ञासा - तीर्थंकर भी इच्छा नहीं करते, लेकिन उन्हें इतना ऐश्वर्य मिल जाता है । क्या निदान करने से तीर्थंकर पद व ये विभूतियाँ मिल जाती हैं ? समाधान सामान्य शब्दों में कहें तो 'निदान' यानी तपस्या के फल को बेचना । इसमें जीव यह याचना करता है कि अगर मेरी तपस्या का कुछ फल है तो अगले भव में मुझे अमुक पद / सामग्री मिले। किन्तु तीर्थंकर परमात्मा का पद निदान से भी प्राप्त नहीं किया जा सकता। निदान करने वाला पर पर भव में नरक जाता है, किन्तु तीर्थंकर तो मोक्षगामी ही होता है । दशाश्रुतस्कंध आदि शास्त्रों में तो कहा गया है कि ऋद्धि की आसक्ति वश की जाने वाली धर्मप्रार्थना मोह है एवं निदान मोक्षदायी शुभ भाव का बाधक है। अतः ऋद्धि लिए निदान कर सकते हैं किन्तु शास्त्रकारों ने इसका निषेध किया है। - तीर्थंकर के जीव के पास कौन-कौन से निधान होते हैं? शास्त्रों में नवनिधान बताए हैं। यथा जिज्ञासा समाधान 1. ऋद्धि निधान 2. सिद्धि निधान 3. शुद्धि निधान 4. बुद्धि निधान 5. शक्ति निधान 6. मुक्ति निधान 8. पुष्टि निधान 9. लक्ष्मी निधान 7. तुष्टि निधान ये केवल स्थूल रूप से बताए हैं। ऐसे अनन्त निधानों के तीर्थंकर धारक होते हैं । जिज्ञासा - तीर्थंकरों की शारीरिक ऊँचाई तो इतनी लम्बी कही गई है, पर यह सम्भव कैसे ? समाधान जैन सिद्धान्त में तीन प्रकार का अंगुल माना गया है1. प्रमाणांगुल - प्रथम तीर्थंकर ऋषभदेव हाथ की अंगुल 2. आत्मांगुल - जिस समय जैसा मनुष्य हो, उसके हाथ की अंगुल 3. उत्सेधांगुल - पाँचवें आरे के लघु मनुष्य के हाथ की अंगुल तीर्थंकरों के शरीर की ऊँचाई उत्सेधांगुल की अपेक्षा से गिनी जाती है। इस प्रकार असंख्यात काल पूर्व जो मनुष्य थे फिर उनके शरीर का माप पाँचवें आरे के मनुष्य की अंगुल से किया जाए, तो उनके बड़े शरीर में शंका नहीं रह सकती। जैनों ने जिन मनुष्यों (तीर्थंकरों) के शरीर को बड़ा माना है, वह काल की अपेक्षा से माना है । J
SR No.002463
Book TitleTirthankar Ek Anushilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurnapragnashreeji, Himanshu Jain
PublisherPurnapragnashreeji, Himanshu Jain
Publication Year2016
Total Pages266
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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