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________________ तीर्थंकर : एक अनुशीलन 42 ये दिक्कुमारी देवियाँ ऊर्ध्वलोक के नन्दन वनों के कूटों से आती है तथा माता को नमस्कार करके उस सूतिका घर में सुगन्धित जलसहित पाँच रंगों के घुटने प्रमाण और उत्तम धूप से सुगन्धित करती है। पुष्प वर्षा करती हैं तथा गीत गाती हैं। 17. नन्दोत्तरा 18. नन्दा 19. आनन्दा 20. नन्दिवर्धना 21. विजया 22. वैजयन्ती 23. जयन्ती 24. अपराजिता पूर्व दिशा के रुचक पर्वत से उपर्युक्त 8 दिक्कुमारियाँ आकर वन्दन विधि कर मुख देखने के लिए हाथ में (सम्मुख) शीशा (दर्पण) लेकर प्रभु के सम्मुख गीत गाती खड़ी रहती हैं। 25. समाहारा 26. सुप्रदत्ता ___ 27. सुप्रबुद्धा 28. यशोधरा 29. लक्ष्मीवती 30. शेषवती 31. चित्रगुप्ता 32. वसुंधरा रुचक द्वीप के दक्षिण में पर्वत पर रहने वाली ये 8 दिशा कुमारियाँ वहाँ जाकर भगवान तथा भगवान की माता को नमस्कार करके सोने के शृंगारमयी कलश में सुगन्धित जल भरकर प्रभु की मातेश्वरी को सभी मिलकर स्नान कराती हैं। फिर प्रभु के आगे गीत-गान-नाटक आरम्भ करती हैं। 33. इलादेवी 34. सुरादेवी 35. पृथ्वी 36. पद्मावती 37. एकनासा 38. नवमिका 39. भद्रा 40. सीता (अशोका) ये आठ दिक्कुमारियाँ पश्चिम दिशा के रुचक पर्वत से आकर पवन ढुलाने के लिए प्रभु की माता के पश्चिम दिशा में सम्मुख हाथों में सोने की दंडी वाले पंखे लेकर खड़ी रहती हैं। 41. अलंबुसा 42. मितकेशी 44. वारुणी 45. हासा 46. सर्वप्रभा 47. श्री (श्रीभद्रा) 48. ह्री (सर्वभद्रा) रुचक द्वीप के उत्तर-पर्वत पर रहने वाली उपर्युक्त दिक्कुमारियाँ वहाँ जाकर तीर्थंकर-तीर्थंकर की माता को वन्दन कर दोनों ओर चार-चार खड़ी हो जाती हैं तथा उत्तर दिशा की ओर से चँवर (चामर) ढुलाती हैं। 43. पुडारका जो साधक बाह्य उपकरणों को अध्यात्म-विशुब्दि के लिए धारण करता है, उसे त्रिलोकदर्शी जिनेश्वर देवों ने अपरिग्रही ही कहा है। - ओयनियुक्ति (745)
SR No.002463
Book TitleTirthankar Ek Anushilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurnapragnashreeji, Himanshu Jain
PublisherPurnapragnashreeji, Himanshu Jain
Publication Year2016
Total Pages266
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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