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________________ तीर्थंकर : एक अनुशीलन 50. चित्रकनका 49. चित्रा 52. वसुदामिनी 43 51. शतेरा (सुतेश) रुचक द्वीप की विदिशा में रहने वाली ये दिशा - कुमारी देवियाँ हाथों में दीपक धारण कर प्रभु के समक्ष खड़ी रहती है। 53. रूपा 54. सुरूपा 55. रूपकावती चार दिक्कुमारियाँ रुचक द्वीप की मध्यम दिशा से आकर प्रभु का 4 अंगुल बाकी रख, शेष नाल को काटती है, पास ही भूमि में गड्ढा खोदकर उसे गाड़ देती हैं। उसके ऊपर वैडूर्यरत्न से रत्नमय चबूतरा बनाकर दर्भ ( दूभ / दूब घास) बोती है। तत्पश्चात् छप्पन दिक्कुमारियाँ सूतिकागृह से अलग तीन स्थानों पर केलों के द्वारा तीन कदलीगृह (केलिघर) बनाती हैं। सभी में रत्नमय सिंहासन रखे जाते हैं। सर्वप्रथम दक्षिण दिशा कदलीगृह में भगवान तथा उनकी माता को ले जा कर रत्न सिंहासन पर विराजित करने के बाद सुखकारक - सुगंधित तेल मर्दन कर उन्हें उद्वर्तन कराया गया होता है । इसके बाद उन्हें पूर्व दिशा के कदलीगृह में ले जाकर मणि पीठ पर बैठाकर सुगंधित जल से स्नान कराया जाता है, चन्दन लेपन किया जाता है तथा दिव्य वस्त्राभूषण से सजाया जाता है। तत्पश्चात् उत्तर दिशा के रत्न सिंहासन पर बिठाकर ' अरणीकाष्ठ' नामक लकड़ी घिस कर अग्नि प्रज्वलित कर चन्दनकाष्ठ अर्थात् गोशीर्ष चंदन से शान्ति पुष्टिकारक होम करती हैं। उससे दो रक्षा - पोटलियाँ (रक्षासूत्र ) बनाकर तीर्थंकर तथा उनकी माता के हाथ में बांधी जाती है। फिर वे दिक्कुमारियाँ 'हे भगवन् ! पर्वतायुर्भव' अर्थात् हे प्रभो ! आपकी आयु पर्वत के समान दीर्घ हो, ऐसा आशिष देकर दो मणिमय गोले उछालती हैं। उन्हें भगवान के खेलने के लिए पलंग पर बाँध कर गीतगान करके तीर्थंकर एवं उनकी माता को जन्मस्थान पर छोड़ कर एक योजन विमान में बैठकर सहर्ष अपने-अपने स्थान पर चली जाती हैं। इन्द्रदेवादि कृत जन्म - महोत्सव दिक्कुमारियों का महोत्सव होने के पश्चात् चौंसठ इन्द्रों के आसन चलायमान होते हैं । अवधिज्ञान से तीर्थंकर प्रभु का जन्म जानकर सौधर्मेन्द्र हरिणैगमेषी देव ( पदाति सेनाप्रमुख) को बुलाकर उसे 12 योजन चौड़ा, 6 योजन ऊँचा तथा एक (चार) योजन नाल वाला 'सुघोषा' नामक घण्टा बजाने का आदेश देते हैं। पाँच सौ देवों के साथ मिलकर घंटा बजाया जाता है, जिसकी ध्वनि से सौधर्म वह साधु नहीं, सांसारिक वृत्तियों में रचा- पचा गृहस्थ ही है जो सदैव संग्रह की इच्छा रखता है। दशवैकालिक (6/19)
SR No.002463
Book TitleTirthankar Ek Anushilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurnapragnashreeji, Himanshu Jain
PublisherPurnapragnashreeji, Himanshu Jain
Publication Year2016
Total Pages266
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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