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जिज्ञासा - तीर्थंकर की माता के गर्भ की क्या विशेषता होती है?
समाधान - तीर्थंकर (गर्भस्थ शिशु) का अचिन्त्य प्रभाव होता है। माता का वातावरण आनन्दमय बन जाता है। अन्य गर्भवती स्त्रियों की भाँति तीर्थंकर की माता बेडौल नहीं दिखती क्योंकि गर्भ ज्यादा बाहर नहीं आता, मानों माता के गर्भ में छिपा हो। इसी कारण से तीर्थंकर की माता को गूढगर्भा भी कहा जाता है।
तीर्थंकर : एक अनुशीलन 40
जिज्ञासा - तीर्थंकरों का देवरूप से च्युत होना च्यवन कहलाता है। अन्य जीवों का देवरूप से च्युत होना च्यवन नहीं कहलाता। क्यों ?
समाधान - च्यवन शब्द का भिन्न अर्थ है । जो आत्मा देवगति से च्युत हो कर वापिस कभी उसी गति में न जाए, जिसका उसी भव में सिद्धत्व पहले से ही निश्चित हो, उसका वास्तविक च्यवन कहा जाता है। हम जीवों का तो देवादि गतियों में भ्रमण चालू ही रहता है। इसी कारण हमारा देवरूप से च्युत होना च्यवन नहीं कहलाता ।
जिज्ञासा - तीर्थंकर का जीव नरक से कैसे च्यवित हो सकता है?
समाधान आयुष्य का बंध अगर तीर्थंकर नाम कर्म बाँधने के बाद किया जाए, तो देवगति का आयुष्य बँधता है एवं जीव देवगति से च्यव कर तीर्थंकरत्व प्राप्त करता है । किन्तु आयुष्य का बंध अगर तीर्थंकर नाम कर्म बाँधने से पहले किया जाए, और उसमें अगर नरक की आयु बाँधी जाए, तो जीव नरक से च्युत होकर माता के गर्भ में आता है। जैसे श्रेणिक राजा ( प्रभु वीर के भक्त राजा) ने गर्भिणी मृगी को मार कर अभिमान करते समय नरकायुष्य बाँधा व बाद में तीर्थंकर नामकर्म बाँधा, तो वो पहली नरक में गए व वहाँ से च्यव कर तीर्थंकर बनेंगे।
जिज्ञासा
च्यवन के समय तीर्थंकर के पास संपूर्ण अवधिज्ञान होता है ?
समाधान नहीं । अवधिज्ञान के भी कई भेद होते हैं। तीर्थंकर को च्यवन से अप्रतिपाती अवधिज्ञान प्राप्त होता है। परमावधि, लोकावधि आदि अवधिज्ञान प्राप्त नहीं होते। भगवान महावीर को तो लोकावधि ज्ञान की प्राप्ति दीक्षा के भी बाद हुई थी।
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बालक, वृध्द और अपंग व्यक्ति, विशेष अनुकम्पा के योग्य होते हैं।
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बृहत्कल्पभाष्य (4342)