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________________ तीर्थंकर : एक अनुशीलन 88 39 स्वामी की माता-त्रिशला रानी को अनेक दोहद हुए। यथा, मैं अपने हाथों से सद्गुरुओं को दान दूं, कारागार से कैदियों को मुक्त कराऊँ, हाथी की अम्बाड़ी पर बैन, राज्य का संचालन स्वयं करूँ, इन्द्राणी के कुंडल युगल छीनकर पहनें, इत्यादि। राजा, इन्द्र, अमात्यादि ने ये दोहद सूझ-बूझ के साथ पूरे किये। तीर्थंकर महावीर की गर्भ प्रतिज्ञा अन्य किसी तीर्थंकर का गर्भावस्था विषयक कोई विशेष प्रसंग प्राप्त नहीं होता। किन्तु आवश्यक नियुक्ति, कल्पसूत्र, इत्यादि ग्रन्थों में तीर्थंकर महावीर सम्बन्धी एक रोचक प्रसंग उल्लिखित है। जब महावीर स्वामी को माता त्रिशला की कुक्षि में आए साढ़े छह माह हुए, तब उन्होंने सोचा कि मेरे गर्भ में हलन-चलन से माता को कितना कष्ट होता होगा? यह सोचकर उन्होंने अपना हलन-चलन, समूची स्पन्दनादि क्रियाएँ बन्द कर दीं। गर्भ को निश्चल महसूस कर माता को बुरे विचार आने लगे। उसके साथ-साथ सम्पूर्ण राजपरिवार भी शोकाकुल हो गया। गर्भस्थ शिशु ने अवधिज्ञान से माता-पिता तथा परिजनों को शोकविह्वल देखा। सोचा यह क्या हो गया? मैंने तो माता के सुख के लिए यह कार्य किया था, किन्तु यह तो दुःख का कारण बन गया। यह सोचकर प्रभु ने. हलन-चलन-स्पन्दन वापिस प्रारम्भ किए। अपने प्रति माता-पिता के ऐसे अनुराग, मोह को देखकर गर्भस्थ प्रभु ने यह प्रतिज्ञा धारण की कि जब तक मेरे माता-पिता जीवित रहेंगे, तब तक में मुण्डित होकर गृहवास का त्याग कर __ दीक्षा अंगीकार नहीं करूँगा। इस प्रकार गर्भ में ही प्रभु ने प्रतिज्ञा ग्रहण की। जिज्ञासा - क्या च्यवित होते समय देवता जानते हैं कि मैं यहाँ से च्युत होऊँगा? समाधान - स्थानांग सूत्र के अनुसार देवता ऐसा 3 कारणों से जानते हैं1. विमान और आभरणों (आभूषणों) की कान्तिहीनता को देखकर। 2. कल्पवृक्ष को म्लान होता हुआ देखकर। 3. तेजोलेश्या को क्षीण होती हुई जानकर। यह शरीर पानी के बुदबुदे के समान नश्वर है। इसे पहले या पीछे एक दिन तो अवश्य छोड़ना पड़ेगा। __ - उत्तराध्ययन (19/13)
SR No.002463
Book TitleTirthankar Ek Anushilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurnapragnashreeji, Himanshu Jain
PublisherPurnapragnashreeji, Himanshu Jain
Publication Year2016
Total Pages266
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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