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तीर्थंकर : एक अनुशीलन 3 33
- इस प्रकार स्वप्न दर्शन के पाँच भेद भगवती सूत्र में लिखे हैं। अतः अर्द्धनिद्रित अवस्था में तीर्थंकर की माता 14 स्वप्न याथातथ्य रूप में देखती है। च्यवन के समय तीर्थंकर की माता स्पष्ट 14 महास्वप्नों को देख कर जाग जाती है।
च्यवन के समय तीर्थंकर मति (आभिनिबोधिक) श्रुत एवं अवधि इन तीन ज्ञान से युक्त थे। देवगति से च्युत होते समय उस आत्मा ने देवगति से च्युत होना है, ऐसा जाना। देवगति से किस प्रकार च्युत हो रहे हैं, यह भी जाना। च्युत होकर वे कहाँ जाएंगे उन्होंने यह भी जाना, किन्तु च्यवनकाल को नहीं जाना, क्योंकि वह अत्यंत सूक्ष्म होता है। चौदह महास्वप्न एवं उनका फल
स्वप्न शास्त्र में 72 प्रकार के स्वप्न कहे गए हैं। इनमें से 42 स्वप्न सामान्य (अशुभ) फलदायक हैं एवं 30 स्वप्न मंगलकारी कहे गए हैं। किसी भी महापुरुष के अवतरण से पहले माता द्वारा स्वप्न दर्शन सांकेतिक लक्षण प्रकट करता है। तीर्थंकर तो उत्कृष्ट भव्यात्मा है। अत: उनकी माता को 30 मंगलकारी स्वप्नों में से उत्तमोत्तम, उपद्रवरहित शुभ 14 स्वप्न दिखाई देते हैं।
- शास्त्रानुसार अगर व्यक्ति स्वप्न दर्शन कर पुनः सो जाता है, तब वे स्वप्न निष्फल जाते हैं। अतः तीर्थंकर की माता स्वप्न दर्शन करके पुन नहीं सोती। प्रातः काल में वह राजा (तीर्थंकर के पिता) को जाकर स्वप्न बताती है, जिसका फल स्वयं पिता अथवा स्वप्नपाठक या कभी देवतागण भी बताते हैं।
वे चौदह महास्वप्न एवं उनके शुभ सांकेतिक फल इस प्रकार हैं1. गज - तीर्थंकर की माता इन्द्र के ऐरावत हाथी के समान विशाल, चार दाँतवाला, ऊँचा
एवं महाश्वेत ऐरावत हस्ति के दर्शन करती है। वह गज विशाल उदर वाला एवं उत्तम लक्षण सहित होता है, जिसके कुंभ-स्थल से मद झरता हुआ दिखाई देता है। मदोन्मत्त रूप से गम्भीर शब्द-गर्जना करते वह माता के मुख में प्रवेश करता है। इस स्वप्न का अर्थ यह है कि माता को महापराक्रमी पुत्र की प्राप्ति होगी, जो चतुर्विध धर्म (श्रमण-श्रमणी, श्रावक-श्राविका) की रचना करने वाला होगा एवं दान-शील-तप-भाव
रूपी-चातुर्याम धर्म की प्ररूपणा करेगा। तथा सभी 64 इन्द्र बालक की सेवा में रहेंगी। 2. वृषभ - एक श्वेत कान्तिमय मलरहित बैल को तीर्थंकर की माता स्वप्न रूप में देखती
है। वह वृषभ अपनी कान्ति से सर्वदिशाओं में उद्योत करता है। ऐसा पतले केश वाले सुन्दरस्थिर वृषभ माता के मुख में प्रवेश करता है।
आवश्यकता से अधिक बोलना उचित नहीं है।
- सूत्रकृताङ्ग (1/14/25)