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तीर्थंकर : एक अनुशीलन 31
जिज्ञासा - सौधर्मेन्द्र को पता कैसे चलता है कि पृथ्वी पर तीर्थंकर देवाधिदेव का कल्याणक हुआ?
समाधान सौधर्मेन्द्र तो नाटकादि देखने में व्यस्त होते हैं। तीर्थंकर का जब च्यवन, जन्म, दीक्षा आदि प्रसंग होते हैं तो उनके पुण्य से अपने आप ही इन्द्र के आधारभू स्थान कम्पायमान चलायमान होते यानी सिंहासन अथवा शय्या अथवा भूमि (जिस अवस्था में इन्द्र हो) हिलती है। तब उस समय सौधर्मेन्द्र क्रोधित हो उठता है। उसे लगता है कि न जाने किस शक्तिमान् शत्रु ने देवलोक पर आक्रमण कर दिया। तब वह अवधिज्ञान का प्रयोग करता है एवं जानता है कि पृथ्वी पर तीर्थंकर का कल्याणक सम्पन्न हुआ है। सौधर्मेन्द्र अपने क्रोध पर शर्मिन्दा सा होता है एवं इस शुभसूचक घटना को जानकर प्रसन्नता से तीर्थंकर के कल्याणक पर वंदन - गुणकीर्तन करने जाता है।
समाधान
जिज्ञासा - तीर्थंकरों के कल्याणक होने पर देवतागण किस कारण से जाते हैं ? यह तीर्थंकरों का अपार पुण्योदय ही होता है जिसके कारण अनेकानेक देवतागण प्रभु के कल्याणक के अवसर पर पधारते हैं। श्री कल्पसूत्र की टीकाओं में लिखा है कि कई देव इन्द्र की आज्ञा पालने के लिए, कई देव मित्रों की प्रेरणा से, कई देव अपनी-अपनी देवियों की प्रेरणा से, कई देव शर्म के कारण, कई देव तीर्थंकर की भक्ति करने के लिए, कई देव कौतुक देखने के लिए तथा कई देव अपूर्व आश्चर्य देखने के लिए तीर्थंकर के कल्याणकों में जाते हैं।
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सूर्यास्त से लेकर पुन: सूर्य पूर्व में न निकल आए तब तक सब प्रकार के खाने-पीने की मन से भी इच्छा न करें।
दशवैकालिक (8/28)