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________________ तीर्थंकर : एक अनुशीलन 88830 इसी प्रकार वाणव्यन्तर जाति के 16 इन्द्रों के भी नाम प्राप्त होते हैं व्यन्तर देवों के नाम दक्षिण दिशा के इन्द्र 1. आणपन्निक सन्निहितेन्द्र 2. पाणपन्निक धातेन्द्र ऋषीन्द्र ईश्वरेन्द्र 3. ऋषिवादी 4. भूतवादी 5. कन्दि 6. महाकन्दित 7. कूष्मांड (कोहंड ) 8. पतंग (प्रेत देव) वत्सेन्द्र हासेन्द्र श्वेतेन्द्र पतंगेन्द्र उत्तर दिशा के इन्द्र सामान्येन्द्र विधातेन्द्र ऋषिपालेन्द्र माहेश्वरेन्द्र विशालेन्द्र हासरति इन्द्र महाश्वेतेन्द्र पतंगपति-इन्द्र ये 64 इन्द्र किस प्रकार प्रभु की स्तवना करते हैं एवं किस प्रकार उत्सव मनाते हैं, इसका वर्णन एवं विचार अग्रिम पृष्ठों में किया गया है। यह भी उल्लेखनीय है कि प्रत्येक कल्याणक पर शक्रेन्द्र तीर्थंकर परमात्मा को वन्दन करके 'शक्रस्तव' से स्तवना करता है, जिसे आज लौकिक भाषा में 'नमोत्थुणं' अथवा 'नमुत्थुणं' कहा जाता है। - यूँ तो जब तक केवलज्ञान नहीं हो जाता, वे तीर्थंकर नहीं होते लेकिन द्रव्य निक्षेप के आश्रय गर्भ से ही वे द्रव्य तीर्थंकर होते हैं । अतः इन्द्र भी द्रव्य तीर्थंकर के रूप में प्रभु की भक्ति करता है। जिज्ञासा - तीर्थंकरों के 5 कल्याणंक कहे हैं । विवाह, राज्य आदि को कल्याणक की संज्ञा क्यों नहीं दी? समाधान जैन धर्म सदा से ही अध्यात्मवादी रहा है। आत्मा का कल्याण ही वास्तविक कल्याण है । भोग, शासन आदि आत्मा का कल्याण नहीं करते। तीनों लोकों में जीव इन अवसरों पर सुख का अनुभव नहीं करते। अतः इन्हें कल्याणक 'नहीं' कहा जाता । विवाह, राज्यादि सभी तीर्थंकरों के नहीं होते। पंच कल्याणक तो सभी तीर्थंकरों के शाश्वत नियम से होते हैं। बुध्दिमान् पुरुष व्यवहार भाषा बोले, वह भी पाप-रहित अकर्कश कोमल हो, उसकी समीक्षा करके एवं सन्देह रहित बोले । दशवैकालिक (7/3) -
SR No.002463
Book TitleTirthankar Ek Anushilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurnapragnashreeji, Himanshu Jain
PublisherPurnapragnashreeji, Himanshu Jain
Publication Year2016
Total Pages266
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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