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तीर्थंकर : एक अनुशीलन 8 24
सुमन
1. दीपंकर 2. कौडिल्य 3. मंगल रेवत 6. शोभित
अनोमदर्शी
पद्म 9. नारद 10. पद्मोत्तर 11. सुमेध
सुजात प्रियदर्शी
अर्थदर्शी 15. धर्मदर्शी 16. सिद्धार्थ 17. तिष्य 18. पुष्य
19. विपश्चो 20. शिखी 21. विश्वम्भू 22. ककुसंघ 23. कोणागमन 24. काश्यप
इसी प्रकार भागवत पुराण के प्रथम स्कंध के तृतीय अध्याय में भी 24 अवतारों की सूची दी गई है। वैदिक साहित्य में कहा है कि संवत्सर (वर्ष) के 24 अंश (अर्धमास) होते हैं। पुरुष के शरीर के भी 24 भाग कहे हैं, इसीलिए 24 भगवानों का चित्रण किया गया है। किन्तु अवतारवाद के कारण यह संख्या भी सुनिश्चित नहीं है। जैनधर्म में तीर्थंकर सम्बन्धी संख्या का सुस्पष्ट वर्णन
जिज्ञासा - एक समय में सभी द्वीपों, भूमियों में अधिक-से-अधिक एक साथ कितने तीर्थंकर जन्म ले सकते हैं?
समाधान - ढाई द्वीप में जघन्य 20 तीर्थंकर तो विचरते ही हैं। उन सभी विहरमानों का जन्म एक साथ होता है। एवं भरत-ऐरावत क्षेत्रों के 10 तीर्थंकरों का जन्म एक साथ होता है। जब एक-एक महाविदेह में एक साथ में चार-चार तीर्थंकर, जन्मते हैं तब 5 महाविदेह के (5 x 4=20) बीस तीर्थंकरों का जन्म साथ होता है। पाँच भरत व पाँच ऐरावत के मिलाकर 10 तीर्थंकर एक समय में जन्मते हैं। .
तीर्थंकरों का जन्म अर्धरात्रि में होता है। भरत-ऐरावत में जब रात्रि होती है, तब महाविदेह में दिन होता है। अतः एक समय में बीस या दस जन्मते हैं ज्यादा नहीं। वे सभी एक साथ (यानी 30 तीर्थंकर) नहीं जन्म सकते। उत्कृष्ट 170 तीर्थंकरों के समय में कुछ प्रहर का अन्तर तो रहता ही है क्योंकि कुल सिंहासन 30 ही हैं।
जो साधक शरीर तक में ममत्व नहीं रखते, वे अन्य क्षुद्र साधन-सामग्री में क्या ममत्व रख सकते
-दशवैकालिक (6/21)