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तीर्थंकर : एक अनुशीलन 8 25
जिज्ञासा - प्रथम तीर्थंकर ऋषभदेव जी ने पहली बार तीर्थ-स्थापना की। तो अन्य 23 तीर्थंकर पुरुषों ने उसी धर्म का दोबारा प्रवर्तन किया अथवा परम्परा का पुनः वहन किया ? इस हेतु से उन्हें तीर्थंकर क्यों कहें?
समाधान - प्रथम तीर्थंकर आदिजिन ऋषभदेव जी ने धर्म का प्रथम प्रवर्तन किया। तीर्थंकर सर्वज्ञ एवं सर्वदर्शी होते हैं, जो किसी का अनुकरण-अनुसरण कभी नहीं करते हैं। वे पुन: जिस सत्य का उत्कीर्तन करते हैं, उसे तीर्थ-प्रवर्तन कहते हैं। सभी तीर्थंकर
अपने-अपने ढंग से तीर्थ का प्रवर्तन करते हैं। अत: वे प्रवर्तक हैं, संवाहक नहीं। अतः उन्हें तीर्थंकर कहने में कोई बाधा नहीं है। परम्परा का वहन छद्मस्थ (जिन्हें केवलज्ञान नहीं होता) करते हैं। अतएव, आचार्य संवाहक होते हैं एवं तीर्थंकर प्रवर्तक।
. कई आधुनिक लेखकों का मानना है कि केवल पार्श्वनाथ एवं महावीर वास्तविक ऐतिहासिक पुरुष हैं एवं 24 तीर्थंकरों की कल्पना बहुत बाद में निराधार रूप से की गई है। ऐसे विचारक मिथ्यात्व का प्रचार कर समाज को भ्रामक राह की ओर ले जा रहे हैं। पुरातात्त्विक साक्ष्यों के अभाव के कारण ऐसा भ्रम फैला है किन्तु साहित्यिक सम्यग्दर्शी साक्ष्यों से यह स्पष्ट है कि तीर्थंकर चौबीस थे, हैं और रहेंगे।
. जिज्ञासा - तीर्थंकरों की शाश्वत संख्या 24 है। इसका क्या कोई वैज्ञानिक आधार हो सकता है?
___समाधान - ऐसा कोई प्रामाणिक आधार तो उपलब्ध नहीं है, किन्तु कई वैचारिक मान्यताओं ने ऐसा पुष्ट करने का प्रयत्न किया है। मानव शरीर के अंदर 23 गुणसूत्र (Chromosomes) होते हैं जो शिशु की रचना को प्रभावित करते हैं। चौबीसवाँ प्रभावक वातावरण (Environment) कहा गया है। अत: चौबीस प्रकार से धर्मसंघ की संस्थापना के लिए चौबीस विभिन्न प्रकृति के तीर्थ की रचना के लिए चौबीस तीर्थंकर अपने ढंग से तीर्थप्रवर्तना के लिए जन्मते हैं।
वैर रखने वाला द्वेषी मनुष्य सदैव वैर ही किया करता है और वह वैर में ही आनन्दित होता है। परन्तु यह प्रवृत्ति पापकारक एवं अहितकर है और अन्त में दुःख प्रदान करने वाली है।
- सूत्रकृताङ्ग (1/8/7)