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तीर्थंकर : एक अनुशीलन 88823
बिखर जाती है एवं भ्रान्तियाँ पनपने लगती हैं। आचार शिथिल हो जाता है एवं शुद्ध तीर्थ विलुप्तप्राय हो जाता है। उस समय दूसरे तीर्थंकर का समुद्भव होता है और वे विशुद्ध रूप से नूतन तीर्थ की स्थापना करते हैं। जिस प्रकार पुराने घाट टूटकर ढह जाते हैं और पुनः नवीन घाट स्थापित किया जाता है, वैसे ही प्रत्येक तीर्थंकर पूर्वप्रचलित तीर्थ की विकृतियों एवं कालिमा को हटाकर नया तीर्थ स्थापित करते हैं।
अतः सभी 24 जिनों को तीर्थं स्थापक तीर्थंकर मानना चाहिए । भरत क्षेत्र के वर्तमान 24 तीर्थंकर इस प्रकार हैं
1. ऋषभदेव (आदिनाथ) जी
3.
सम्भवनाथ जी
5. सुमतिनाथ जी
9.
7. सुपार्श्वनाथ जी सुविधिनाथ जी 11. श्रेयांस नाथ जी
13. विमलनाथ जी
15. धर्मनाथ जी
17. कुन्थुनाथ जी 19. मल्लिनाथ जी -
21. नमिनाथ जी
23. पार्श्वनाथ जी
अजितनाथ जी
अभिनन्दन स्वामी जी
2.
4.
6.
8.
10. शीतलनाथ जी
पद्मप्रभ स्वामी जी
चन्द्रप्रभ स्वामी जी
12. वासुपूज्य स्वामी जी
14. अनन्तनाथ जी
16. शान्तिनाथ जी
18. अरनाथ जी
20. मुनिसुव्रत स्वामी जी 22. अरिष्टनेमि (नेमिनाथ) जी 24. महावीर स्वामी जी
अजितनाथ जी के समय में ही उत्कृष्ट 170 तीर्थंकर हुए थे। इन सभी 24 तीर्थंकरों का कोष्ठकबद्ध परिचय एवं अन्य तीर्थंकरों, विहरमानों की नामावलि इसी पुस्तक के द्वितीय विभाग में दी गई है।
अन्य धर्मों में 24 भगवान
जैनधर्म के 24 तीर्थंकरों की परम्परा का गतानुगतिक रूप को अनुसरण कर अन्य धर्मों में भी 24 भगवानों की परिकल्पना की गई है। जैसे बौद्ध धर्म में 24 बुद्धों के नाम दिए हैं -
जैसे कछुआ अपने अंगों को अपने शरीर में समेट लेता है, वैसे ही मेधावी पुरुष पाप को अध्यात्म के द्वारा समेट लेता है।
सूत्रकृताङ्ग (1/8/1/16)
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