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तीर्थंकर : एक अनुशीलन 2 किन्तु, जैन परम्परा में इस शब्द का हमेशा से ही प्राधान्य रहा है, ऐसा कहना अनुचित नहीं होगा। इसी कारण बौद्ध साहित्य में भी इसका प्रयोग किया गया है। बौद्ध साहित्य में अनेक स्थलों पर 'तीर्थंकर' शब्द व्यवहृत हुआ है।
यद्यपि सामञ्जफल-सुत्त, लंकावतार सूत्र आदि बौद्ध शास्त्रों में छह तीर्थंकरों का उल्लेख है किन्तु यह स्पष्ट है कि जैन साहित्य की तरह प्रमुख रूप से यह शब्द वहाँ प्रचलित नहीं रहा है। केवल कुछ ही स्थलों पर इसका उल्लेख हुआ है, किन्तु जैन वाङ्मय में इस पवित्र शब्द का प्रयोग विपुल मात्रा में हुआ है। 'तीर्थकर' शब्द की रचना
प्राकृत (या अर्धमागधी) भाषा में तीर्थंकर के लिए 'तित्थंकर', 'तित्थकर' 'तित्थयर' इत्यादि रूपांतर हैं। प्राकृत भाषा इतनी लचीली भाषा है कि शब्दों का थोड़ा सा भी अंतर भावों को बदले बिना विभिन्न शाब्दिक अर्थों की ओर संकेत करता है। संस्कृत भाषानुसार तीर्थंकर शब्द-तीर्थ उपपद कृञ्-अप से निष्पन्न हुआ है, अर्थात् जो आप्तपुरुष धर्म-तीर्थ का प्रचार-प्रसार करे, वह तीर्थंकर है। तीर्थ का अर्थ पुल भी होता है। मोक्षमार्ग तक के पुल रूप जो मार्ग बताते हैं, वे तीर्थंकर होते हैं।
प्रश्न यह उत्पन्न होता है कि तीर्थ शब्द की निष्पत्ति किस प्रकार है ? 'तीर्थ' शब्द की संरचना भी तृ+थक् से हुई है एवं तृ धातु का अर्थ है तरना, तैरना। उत्तराध्ययन चूर्णि के अनुसार 'तीर्यते तार्यते वा तीर्थम्' जिससे तरा जाए, वह तीर्थ है। शब्द कल्पद्रुम में इसी को विस्तृत करके लिखा है। “तरति पापादिकं यस्मात् तत् तीर्थम्” जिसके द्वारा पापादिक से या संसार समुद्र से पार हुआ जाए, वही तीर्थ है। 'तीर्थं करोति इति तीर्थंकरः' एवं ऐसे मंगलमयी तीर्थ के रचयिता तीर्थंकर हैं। वर्तमान में जो भी साधु-साध्वी-श्रावक-श्राविका दृष्टिगोचर हैं, उनके आद्य संस्थापक तीर्थंकर भगवन्त ही होते हैं अर्थात् तीर्थंकर द्वारा ही यह तीर्थ स्थापित है।
__ गणधर गुरु गौतम स्वामी जी भगवान् महावीर से पूछते हैं कि चतुर्विध संघ तीर्थ होता है या तीर्थंकर तीर्थ होते हैं? परमात्मा कहते हैं कि श्रमणप्रधान चतुर्विध संघ ही तीर्थ होता है और उस तीर्थ के कर्ता तीर्थंकर होते हैं। धर्म-तीर्थ के संस्थापक तीर्थंकर
संस्कृत साहित्य में 'तीर्थ' शब्द-घाट, सेतु या गुरु के रूप में भी प्रयुक्त हुआ है अर्थात् जो महापुरुष संसार रूपी सरिता को पार करने व करवाने के लिए धर्मतीर्थ के निर्माण का कारण बने, धर्मतीर्थ के प्रवर्तन का निमित्त बने, वह तीर्थंकर है। भूतकाल में जैसा भी कुछ कर्म किया गया है, भविष्य में वह उसी रूप में उपस्थित होता है।
- सूत्रकृताङ्ग (1/5/2/23)