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तीर्थंकर : एक अनुशीलन 189
दीक्षा तप (42) छट्ठ तप (बेला)
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नित्य भक्त ( एकासना ) छट्ठ तप (बेला)
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9.
मार्गशीर्ष वदी 6
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10. माघ वदी 12 11. फाल्गुन वदी 13 12. फाल्गुन वदी 15 ( पूर्णिमा) चौथ भक्त (उपवास)
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13. माघ सुदी 4
छट्ठ तप (बेला)
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14. वैशाख वदी 14
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| अट्ठम तप (तेला) छट्ठ तप (बेला)
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दीक्षा कल्याणक तिथि
(41)
चैत्र वदी 8
माघ सुदी 9
मार्गशीर्ष सुदी 15 (पूर्णिमा)
माघ सुदी 12
वैशाख सुदी 9 कार्तिक वदी 13
ज्येष्ठ सुदी 13 पौष वदी 13
15. माघ सुदी 13 16. ज्येष्ठ वदी 14 17. वैशाख वदी 5 18. मार्गशीर्ष सुदी 11 19. मार्गशीर्ष सुदी 11
20. फाल्गुण सुदी 12 21. आषाढ़ वदी 9 22. श्रावण सुदी 6 23. पौष वदी 11
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24. मार्गशीर्ष सुदी 10
22
| अट्ठम तप (तेला) छट्ठ तप (बेला)
दीक्षा शिविका (पालकी) (43)
सुदर्शना शिविका
सुप्रभा शिविका सिद्धार्था शिविका अर्थसिद्धा शिविका अभयंकरा शिविका निवृत्तिरा मनोहरा शिविका
मनोरमिका शिविका
सूरप्रभा शिविका
शुक्लप्रभा शिविका विमलप्रभा शिविका पृथ्वी शिविका देवदिन्ना शिविका सागरदत्ता शिविका
नागदत्ता शिविका
सर्वार्था शिविका
विजया शिविका वैजयन्ती शिविका जयन्ती शिविका अपराजिता शिविका देवकुरु शिविका द्वारवती (उत्तरकुरु) विशाला शिविका
चंद्रप्रभा शिविका
विशेष : तीर्थंकर स्वयं संबुद्ध होते हैं। कुछ शास्त्रकारों का मत है कि पार्श्वकुमार को नीलांजना नामक नर्तकी की मृत्यु के निमित्त से अथवा नेमिनाथ - राजुल के चित्र देखकर उस निमित्त से वैराग्य भाव की जागृति हुई ।