SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 200
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (11) क्र.सं. श्रुतज्ञान (10) बारह (12) अंग ग्यारह (11) अंग ग्यारह (11) अंग ग्यारह (11) अंग (11) अंग ग्यारह ग्यारह (11) ग्यारह (11) अंग ग्यारह (11) अंग | ग्यारह (11) अंग ग्यारह (11) ग्यारह (11) अंग ग्यारह (11) अंग ग्यारह (11) अंग | ग्यारह (11) अंग ग्यारह (11) अंग ग्यारह (11) अंग ग्यारह (11) अंग ग्यारह (11) अंग ग्यारह (11) अंग ग्यारह (11) | ग्यारह (11) अंग ग्यारह (11) अंग | ग्यारह (11) अंग 24. | ग्यारह (11) अंग तीर्थकर : एक अनुशीलन @ 179 पूर्वभव सम्बन्धी परिचय किस देवलोक से च्यवन | स्वर्गायुष्य (12) सर्वार्थसिद्ध अनुत्तर विमान 33 सागरोपम विजय अनुत्तर विमान 33 सागरोपम सातवाँ ग्रैवेयक 34 सागरोपम (29) जयन्त अनुत्तर विमान 33 सागरोपम जयन्त अनुत्तर विमान 33 सागरोपम नवमां ग्रैवेयक 31 सागरोपम छठा ग्रैवेयक 28 सागरोपम वैजयंत अनुत्तर विमान 33 सागरोपम 9 वाँ आणत देवलोक 34 सागरोपम (19) 10वाँ आणत देवलोक 20 सागरोपम 12वाँ अच्युत देवलोक 22 सागरोपम 10वाँ प्राणत देवलोक 20 सागरोपम 8वाँ सहस्रार देवलोक 18 सागरोपम 10वाँ प्राणत देवलोक 20 सागरोपम विजय अनुत्तर विमान 32 सागरोपम सर्वार्थसिद्ध अनुत्तर विमान 33 सागरोपम सर्वार्थसिद्ध अनुत्तर विमान 33 सागरोपम सर्वार्थसिद्ध अनुत्तर विमान 33 सागरोपम जयन्त अनुत्तर विमान 33 सागरोपम अपराजित अनुत्तर विमान 33 सागरोपम 10वाँ प्राणत देवलोक 20 सागरोपम अपराजित अनुत्तर विमान 33 सागरोपम 10वाँ प्राणत देवलोक 20 सागरोपम 10वाँ प्राणत देवलोक 20 सागरोपम विशेष: श्री पार्श्वनाथ चरित्र में उल्लेख है कि प्राणत स्वर्ग से श्री पार्श्वप्रभु के देवात्मा जिज्ञासावश च्यवन से पूर्व बाल रूप से माता वामा रानी को देखने आए थे।
SR No.002463
Book TitleTirthankar Ek Anushilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurnapragnashreeji, Himanshu Jain
PublisherPurnapragnashreeji, Himanshu Jain
Publication Year2016
Total Pages266
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy