SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 199
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ तीर्थकर : एक अनुशीलन 178 2. उत्तरकुरु में युगलिक 5. ललितांग देव 8. सौधर्म देवलोक 11. वज्रनाभ चक्रवर्ती 3. सौधर्म देवलोक 6. वज्रजंघ राजा 9. जीवानन्द वैद्य 12. सर्वार्थसिद्ध विमान 2. सौधर्म देवलोक 5. पद्म राजा 3. 6. अजितसेन चक्रवर्ती वैजयंत अनुत्तर विमानवासी देव ऋषभदेव जी के 13 भव 1. धन सार्थवाह 4. महाबल राजा 7. युगलिक 10. अच्युत देवलोक 13. ऋषभदेव जी चन्द्रप्रभ स्वामी के 7 भव 1. वर्मराजा 4. अच्युतेन्द्र 7. चन्द्रप्रभ स्वामी शान्तिनाथ जी के 12 भव 1. श्रीषेण राजा 4. अमित तेज 7. अच्युत देवलोक 10. मेघरथ राजा मुनिसुव्रत स्वामी के 9 भव 1. शिवकेतु राजा 4. सनत्कुमार देव 7. श्रीवर्म राजा नेमिनाथ जी के 9 भव 1. धन राजा 4. माहेन्द्र देवलोक 7. शंख राजा पार्श्वनाथ जी के 10 भव 1. मरुभूति 4. किरणवेग विद्याधर 7. मध्यम ग्रैवेयक 10. पार्श्वनाथ जी 2. युगलिक 5. प्राणत देवलोक 8. वज्रायुध चक्री 11. सर्वार्थसिद्धविमान 3. सौधर्म देवलोक 6. बलभद्र 9. तीसरा अवेयक 12. शान्तिनाथ जी । 2. सौधर्म देवलोक 5. वज्रकुंडन राजा 8. अपराजित देवलोक 3. कुबेरदत्त राजा 6. ब्रह्मदेवलोक 9. मुनिसुव्रत स्वामी 2. 5. 8. सौधर्म देवलोक अपराजित राजा अपराजित देवलोक 3. चित्रगति विद्याधर 6. आरण देवलोक 9. नेमिनाथ जी 2. हाथी 5. अच्युत देव 8. सुवर्णबाधु चक्री 3. सहस्रार देव वज्रनाभ 9. प्राणत देव अपने लिए अथवा दूसरों के लिए क्रोध या भय से किसी भी प्रसंग पर दूसरों को पीड़ा पहँचाने वाला वचन न तो स्वयं बोले और न दूसरों से ही बुलवाएँ। - दशवैकालिक (6/11)
SR No.002463
Book TitleTirthankar Ek Anushilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurnapragnashreeji, Himanshu Jain
PublisherPurnapragnashreeji, Himanshu Jain
Publication Year2016
Total Pages266
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy