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________________ तीर्थंकर : एक अनुशीलन 126 अप्पडिहय - वरनाण-दंसणधराणं - अनाशवान केवलज्ञान एवं केवलदर्शन के धारक। विअदृ छउमाणं - घमस्थावस्था से जो मुक्त हैं। जिणाणं जावयाणं - तीर्थंकर स्वयं जिन (राग-द्वेष शत्रुओं के विजेता) हैं और दूसरों को भी जिन बनने का मार्ग देने वाले ज्ञापक हैं। तिन्नाणं तारयाणं - स्वयं तिरे औरों को तारे। बुद्धाणं बोहयाणं - स्वयं बुद्ध एवं दूसरों को बोध देने वाले। । मुत्ताणं मोअगाणं - स्वयं मुक्त हैं एवं दूसरों को मुक्ति दिलाने वाले। सव्वन्नृणं सव्वदरिसीणं - सर्वज्ञ-सर्वदर्शी। सौधर्मेन्द्र उक्त विशेषणों से तीर्थंकर परमात्मा की स्तव-स्तुति करता है। आज भी उपरिलिखित विशेषण युक्त नमोत्थुणं बोलकर तीर्थंकर परमात्मा के गुणों का स्मरण किया जाता है जो मोक्षमार्ग का बीज है। लोगस्स में तीन महाविशेषण लोगस्स सूत्र (अपरनाम चतुर्विशंतिस्तव) भक्तिवाद का एक अनन्य उदाहरण है। चौबीस तीर्थंकरों की स्तुति एवं गुणोत्कीर्तन से लोगस्स अपूर्व सूत्र बन चुका है। इसके अन्दर तीर्थंकर को तीन महाविशेषणों से अभिहित किया गया है। ये विशेषण महान् इसलिए हैं क्योंकि रचयिता की मानसिकता एवं कल्पना हमारे वैचारिक दृष्टिकोण से कहीं आगे है। इसके रचयिता ने तीर्थंकरों की ज्येष्ठता प्रकृति की तीन वस्तुओं से की है। जो स्वयं में ही विशिष्टतम उनसे सिद्ध की है। यथा- ' 1. चंदेसु निम्मलयरा - चन्द्रमा से भी अधिक निर्मल। चन्द्रमा की कलाओं को शीतलता एवं निर्मलता का प्रतीक माना गया है। तीर्थंकर भी निर्मलता एवं सौम्यता की प्रतिमूर्ति कहे जाते हैं। किन्तु तीर्थंकरों को यहाँ चन्द्र से भी विशेष निर्मल कहा गया है। कारण- चन्द्रमा पूर्ण धवल नहीं होता, उसमें कुछ कलंक दिखाई देता है, परन्तु तीर्थंकर तो सभी दोषों से रहित होते हैं। उनमें चार घनघाति रूप कर्म कलंक नहीं होता है। इसीलिए तीर्थंकर चन्द्रमाओं से भी अधिक निर्मल है। आइच्चेसु अहिय पयासयरा - सूर्यों से भी अधिक प्रकाशमान्। सूर्य अपनी ऊर्जा के द्वारा सर्वतः प्रकाश का स्रोत है।उसी प्रकार, तीर्थंकर भी द्रव्य उद्योत (प्रकाशमय) एवं भावउद्योत (ज्ञानमय) के कर्ता माने जाते हैं, लेकिन यहाँ तीर्थंकरों को सूर्य से भी विशेष प्रकाशक यदि ज्ञान और तदनुसार आचरण नहीं है तो उस साधक की दीक्षा सार्थक नहीं है। - व्यवहारभाष्य (7/215)
SR No.002463
Book TitleTirthankar Ek Anushilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurnapragnashreeji, Himanshu Jain
PublisherPurnapragnashreeji, Himanshu Jain
Publication Year2016
Total Pages266
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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