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________________ तीर्थंकर : एक अनुशीलन 8 108 जिज्ञासा - केवलज्ञान-प्राप्ति के बाद तीर्थंकर पृथ्वी का स्पर्श नहीं करते एवं सुवर्ण कमल पर ही विहार करते हैं। इसके पीछे क्या कोई वैज्ञानिक रहस्य हो सकता समाधान - वर्तमान में विज्ञान यह सिद्ध कर चुका है कि प्रत्येक सजीव पदार्थ में से ऊर्जा उत्सर्जित होती है। इस शक्ति को वैज्ञानिक विद्युत् जैविक चुंबकीय शक्ति (Bioelectro-magnetic energy) कहते हैं। प्राचीन समय में इसी को आभामंडल (aura) कहा जाता था। मानव के शरीर की यह ऊर्जा/शक्ति उसके शुभ भावों, शारीरिक बल व मनोबल से प्रभावित होती है। तीर्थंकर उत्तम शरीर शक्ति, आत्म शक्ति व सर्वशुभ भावों के धनी होते हैं। चार कर्मों के अभाव में उनके शरीर में बहुत सकारात्मक ऊर्जा होती है जो सूक्ष्म जैविक विद्युचुंबकीय शक्ति के स्वरूप में होती है। ऐसी अपार शक्ति के कारण उनका वातावरण परम शक्तिशाली बन जाता है। इतनी अधिक ऊर्जा को अन्य प्राणी व सामान्य पृथ्वी झेलने में असमर्थ होते हैं। इस कारण उस ऊर्जा को कम मात्रा में लोगों तक पहुँचाने के लिए सुवर्ण की धातु का प्रयोग किया जाता है। देवतागण सुवर्ण धातु के कमल रचते हैं क्योंकि यही धातु इतनी शक्ति सहन कर सकती है एवं अधिक शक्ति को अपने पास रख धरती में बाकी की ऊर्जा डाल देती है। इस कारण से तीर्थंकर परमात्मा अतिक्रान्त के भय से पृथ्वी पर चलें, इससे पूर्व ही उनकी अपार ऊर्जा को संहरने के लिए देवता सुवर्ण कमल रचते हैं। इसी ऊर्जा के कारण प्रभु के आसपास दुर्भिक्ष, वध आदि नहीं होते।
SR No.002463
Book TitleTirthankar Ek Anushilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurnapragnashreeji, Himanshu Jain
PublisherPurnapragnashreeji, Himanshu Jain
Publication Year2016
Total Pages266
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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