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तीर्थंकर : एक अनुशीलन
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से आते ही रहते हैं। अतः वे भिक्षा के लिए घूमते नहीं हैं। अन्य साधु प्रभु के लिए आहार लेकर आते हैं। शास्त्रों में उन्हें 'लोहार्य' कहा है (कुछ के अनुसार भगवान महावीर के संदर्भ में लोहार्य का अर्थ सुधर्मा स्वामीजी है) गौतम स्वामीजी भी अपने पारणे के दिन भगवान के लिए आहार लाते थे।
लोकप्रकाश ग्रन्थ में कहा गया है कि दूसरे प्रहर में पादपीठ पर या फिर राजा द्वारा लाये सिंहासन पर बैठकर जब गणधर भगवन्त देशना देते हैं, तब किसी के द्वारा प्रश्न किए जाने पर वे उसके असंख्यात भवों को ऐसे बताते हैं जैसे वे छद्मस्थ नहीं, बल्कि केवलज्ञानी हों।
जिज्ञासा - देवताओं द्वारा रचा गया समवसरण कितने समय तक रहता है ? समाधान अलग-अलग इन्द्रों द्वारा रचे गए समवसरण का स्थिरता काल भी अलग-अलग होता है। जैसे
• सौधर्मेन्द्र का आठ दिन तक
ईशानेन्द्र का 15 दिन तक
• माहेन्द्र का 2 मास तक
● अच्युतेन्द्र का दस दिन तक ।
• सनत्कुमार का एक महीने (30 दिन) तक • ब्रह्मेन्द्र देव का 4 मास तक समवसरण रहता है।
जिज्ञासा जब समस्त देवता मिलकर भी परमात्का के एक अंगूठे की रचना नहीं कर सकते तो व्यन्तर देव तीन दिशाओं में तीन प्रतिबिम्ब कैसे बना पाते हैं?
समाधान यह सब परमात्मा के अचिन्त्य तीर्थंकर नामकर्म के महापुण्य प्रभाव
से ही होता है कि एक ही व्यन्तर देवता में परमात्मा के तीन रूपों की विकुर्वणा ( रचना ) करने की शक्ति उत्पन्न हो जाती है। विशेषावश्यक भाष्य में कहा है
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जे ते देवेहिं कया, तिदिसि पडिरूवगा तस्स । तेसिंपि तप्पभावा, तयाणु रूवं हवइ रूवं ॥
टीका में 'तप्प - भावा' का अर्थ तीर्थंकर का प्रभाव बताया है।