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तीर्थंकर : एक अनुशीलन 88 99
पूर्व दिशा में धर्मध्वज। दक्षिण दिशा में मानवध्वज। पश्चिम दिशा में गजध्वज। उत्तर दिशा में सिंहध्वज।
समवसरण की कुल 20,000 सीढ़ियाँ होती है। चारों दिशाओं की 80,000 सीढ़ियाँ होती हैं। प्रत्येक सीढ़ी एक हाथ ऊँची होती है। मगर तीर्थंकर का अतिशय ऐसा होता है कि कोई भी व्यक्ति बाल, युवा या वृद्ध थकता नहीं है। वे आराम से, प्रसन्नता से 20,000 सीढ़ियाँ चढ़ जाते हैं। समवसरण की ऐसी रचना केवलज्ञान होने के पश्चात् अन्तर्मुहूर्त में हो जाती है। प्रथम और तीसरे गढ़ के द्वार पर देव और दूसरे गढ़ के द्वारों पर देवियाँ होती हैं।
प्रथम गढ़ द्वितीय गढ़ । | तृतीय गढ़ पूर्व दिशा तुम्बरु देव
जया देवी
सोम वैमानिक देव पश्चिम दिशा मालधारी-कपाली अजितादेवी वरुण ज्योतिष देव उत्तर दिशा जटामुकुट देव अपराजिता देवी | धनद भवनपति देव दक्षिण दिशा | खट्वांगधारी देव विजया देवी | यम व्यन्तर देव
परमात्मा का प्रातिहार तुंबरू नामक देव होता है क्योंकि वे हमेशा पूर्व दिशा से ही प्रवेश करते हैं। द्वितीय गढ़ के पूर्व द्वार पर जया नामक दो देवियाँ श्वेत वर्ण और अभयमुद्रा से सुशोभित करकमल वाली द्वारपालिका होती हैं। दक्षिण द्वार पर लाल वर्ण की विजया नामक दो देवियाँ हाथ में अंकुश लिए खड़ी रहती हैं। पश्चिम द्वार पर पीतवर्ण की अजिता नामक दो देवियाँ हाथ में पाश पकड़े खड़ी रहती हैं। उत्तर द्वार पर नील वर्ण वाली अपराजिता नामक दो देवियाँ हाथ में मकर पकड़े खड़ी रहती हैं।
तृतीय गढ़ के पूर्व द्वार पर पीतवर्ण वाला सोम देव हाथ में धनुष लेकर, दक्षिण द्वार पर गौरवर्ण वाला यम देव हाथ में दण्ड लेकर, पश्चिम द्वार पर लालवर्ण वाला वरुण देव हाथ में पाश लेकर एवं उत्तर द्वार पर श्यामवर्ण वाला धनद देव हाथ में गदा लेकर खड़े रहते हैं।
चारों दिशाओं में परमात्मा के ऊपर तीन-तीन छत्र सुशोभित होते हैं, इस प्रकार कुल बारह छत्र होते हैं। किन्तु 'अर्हन्नमस्कारावलिका' के अनुसार 'नमोपंचदसछत्ररयणसंसोहिआण
जो आचार्य भव्य प्राणियों को वीतराग भगवान का यथार्थ अनुष्ठान-मार्ग दिखाता है, वह उनके लिए चक्षुभूत होता है।
- गच्छाचार-प्रकीर्णक (26)