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________________ तीर्थंकर : एक अनुशीलन 891 अपने साधक जीवन के 4515 दिन (12 वर्ष और 12 पक्ष) में केवल 349 दिन ही आहार किया और अन्य दिन निर्जल तपश्चरण किया। ? तीर्थंकर अचेल या सचेल सभी तीर्थंकर दीक्षा समय सौधर्मेन्द्र प्रदत्त देवदूष्य वस्त्र साधना पर्यन्त धारण करते हैं। हालांकि सभी तीर्थंकर सर्वस्व त्याग देते हैं किन्तु वे साधनापर्यन्त छद्मस्थावस्था में केवल एक वस्त्र धारण करते हैं । विशेषावश्यक भाष्य में इसका हेतु बताते हुए लिखा है निरुपमधिइसंघयणा चउनाणाइसयसत्तसंपण्णा । अच्छिद्दपाणिपत्ता जिणा जियपरिसहा सव्वे ॥ सवत्थतित्थोवएसणत्थंवि । तहवि गहिएगवत्था अभिनिक्खमंति सव्वे तम्मि चुए 5 चेलया हुंति ॥ अर्थात् - सभी तीर्थंकरों के सन्निकट चार ज्ञान उत्तम संहनन, अतिशय होते हैं। वे असाधारण वृत्ति के धनी होते हैं एवं परिषह विजय के कारण स्वयं कोई वस्त्र ग्रहण नहीं करते, किन्तु सवस्त्र संघ की स्थापना करने के हेतु से वे इन्द्रप्रदत्त देवदूष्य वस्त्र जीताचार समझकर छद्मस्थावस्था में पहने रखते हैं। सभी तीर्थंकरों के देवदूष्य वस्त्र जीवनपर्यंत उनके साथ रहे सिवाय श्रमण महावीर के । महावीर स्वामी ने अर्धवस्त्र सोम ब्राह्मण को दिया एवं बचा अर्धवस्त्र दीक्षा के एक वर्ष व एक मास के पश्चात् स्कंध से गिर गया। जिज्ञासा - तीर्थंकरों को जब इतने घनघोर उपसर्ग होते हैं, तो उसके पश्चात् उनका शरीर इतनी जल्दी ठीक कैसे हो जाता है ? समाधान साधनाकाल तीर्थंकर अपनी आत्मा में इतने ज्यादा रमे हुए होते हैं कि शरीर पर कौन कैसा उपसर्ग दे रहा है, इसका उन्हें पता ही नहीं चलता । फिर भी उनके शारीरिक अतिशयों के कारण उनका शरीर जल्दी ठीक हो जाता क्योंकि उनके शरीर में विशिष्ट प्रकार की संरोहण शक्ति होती है। - जो कुछ भी प्राप्त न होने पर भी खेद नहीं करता और मिल जाय तो प्रसन्न नहीं होता, वही 'पूज्य' है। दशवैकालिक (9/3/4) -
SR No.002463
Book TitleTirthankar Ek Anushilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurnapragnashreeji, Himanshu Jain
PublisherPurnapragnashreeji, Himanshu Jain
Publication Year2016
Total Pages266
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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