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________________ तीर्थंकर : एक अनुशीलन 85 सं । 1. क्षुधा परिषह - निर्दोष (प्रासुक) आहार न मिलने पर भूख का कष्ट सहना। पिपासा परिषह - प्यास का परिषह। 3. शीत परिषह - ठंड सहने का कष्ट। उष्ण परिषह - गरमी सहन करने का कष्ट। दंशमशक परिषह - डाँस, मच्छर, नँ, चींटी आदि द्वारा दिया गया कष्ट। अचेल (नागण्य) परिषह - आवश्यक वस्त्र न मिलने से होने वाला कष्ट। अरति परिषह - मन में उदासी का परिषह। 8. स्त्री परिषह - स्त्रियों द्वारा होने वाला कष्ट। 9. चर्या परिषह - ग्राम-नगरादि में विहार में होने वाला कष्ट। • 10. निषद्या (नषेधिकी) परिषह - सज्झाय की भूमि में होने वाले उपद्रव। 11. आक्रोश परिषह - धमकाए / फटकारे जाने पर दुर्वचनों से होने वाले कष्ट। 12. शय्या परिषह - रहने के स्थान सम्बन्धी परिषह। 13. · वध परिषह - पीटे जाने पर होने वाले कष्ट। 14. याचना परिषह - भिक्षा माँगने में होने वाला परिषह। 15. अलाभ परिषह - वस्तु के न मिलने पर होने वाला परिषह। 16. रोग परिषह - रोग से होने वाले उपद्रव। 17. तृणस्पर्श परिषह - तिनको के चुभने से होने वाला कष्ट। 18. जल्ल (मल) परिषह - उद्वेग को प्राप्त न होना व स्नान की इच्छा न करना। 19. सत्कार-पुरस्कार परिषह - जनता द्वारा मान-पूजा होने पर हर्षित न होते हुए समभाव रखना गर्व में न पडना व मान पूजा के अभाव में खिन्न न होना। 20. प्रज्ञा परिषह - प्रज्ञा होने पर अभिमान न करना। 21. अज्ञान परिषह - अज्ञान के कारण होने वाला कष्ट। 22. दर्शन परिषह - अन्य दर्शन की ऋद्धि-आडम्बर देखकर भी अपने मत में दृढ़ रहना। अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह - इन पाँच महाव्रतों को स्वीकार करके बुदिमान मनुष्य जिन-भगवान द्वारा उपदिष्ट धर्म का आचरण करे। - उत्तराध्ययन (21/22)
SR No.002463
Book TitleTirthankar Ek Anushilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurnapragnashreeji, Himanshu Jain
PublisherPurnapragnashreeji, Himanshu Jain
Publication Year2016
Total Pages266
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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