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१. चर्चरी
२. उपदेश रसायन
३. चैत्यवन्दन कुलक
४. कालस्वरूप कुलक
५. संदेह दोलावली
६. उपदेश कुलक ७. उत्सूत्रपदोद्घाटन कुलक
८. गणधर सार्द्ध शतक
६. गणधर सप्ततिका
१०. 'तं जयउ' स्त्रोत
११. 'मयर हियं' स्तोत १२. 'सिग्घमवहरउ' स्तोत्र
१३.
श्रुतस्तव
१४. पार्श्वनाथ मन्त्रगर्भित स्तोत्र
१५. महाप्रभावक स्तोत्र
१६. अजित शान्ति स्तोत्र
१७. चक्रेश्वरी स्तोत्र
१८. योगिनी स्तोत
१६. सर्वजिनस्तुति २०. वीर स्तुति
२१. विशिका
२२. पदव्यवस्था
२३. शान्तिपर्व विधि
२४. आरात्रिक वृत्तानि
श्रीजिनदत्तसूरि का शिष्य समुदाय भी अत्यन्त विशाल था। इनकी परम्परा नव शताब्दियों से चली आ रही है । इसमें अनेकों शाखाएं और प्रशाखाएं भी समय-समय पर फूटी हैं और उनमें एक नहीं सैकड़ों धुरन्धर आचार्य एवं उपाध्याय हुए हैं, जिनमें अलोकिक प्रतिभा, अद्वितीय विद्वत्ता तथा अनोखी तत्परता के साथ-साथ दृष्टि की वह उदारता एवं विशालता भी थी जो अनेकान्तवादी जैन-धर्म की प्रमुख देन है । यही कारण है कि इस गच्छ की परम्परा के मनीषियों ने जितना साहित्य-सर्जन किया है उसकी आज श्वेताम्बर समाज के समग्र गच्छों द्वारा निर्मित साहित्य-निधि से तुलना की जा सकती है। इन मनीषियों ने आगम, कर्म साहित्य, कथानुयोग, प्रकरण, व्याकरण, दर्शन, न्याय, लक्षण, छन्द, कोष, साहित्य, ज्योतिष, वैद्यक, नाट्य, नीति और कामशास्त्र आदि सभी विषयों पर अपनी लेखिनी चलाकर, मौलिक एवं टीकाएं रचकर केवल जैन साहित्य की ही नहीं अपितु भारतीय साहित्य की अनुपमेय सेवा की है । इन मनीषियों ने केवल साहित्य-सर्जन ही नहीं अपितु उस साहित्य के संरक्षण, संवर्धन तथा संप्रचलन में भी अत्यधिक योग दिया है जिसकी सृष्टि जैनेतर विद्वानों ने की थी । इस परम्परा के आचार्य प्रायः विद्वान हुए हैं और इन्होंने अपनी 'करनी' और 'कथनी' को सदा ही पाण्डित्य की शान पर पैनी करके रखा है । यही कारण है कि इस गच्छ और परम्परा के अनेक विद्वानों की कृतियां और सिद्धियां अपने गच्छ के सीमित परिधि से ऊपर उठकर सर्वगच्छीय सन्मान प्राप्त कर सकी है।
इस जिनवल्लभीय खरतरगच्छ परम्परा के प्रमुख - प्रमुख आचार्य, उपदेशक और साहित्य-सर्जकों का शताब्दी के अनुसार उल्लेख करना यहां अप्रासंगिक न होगा:
१३ वीं शती - युगप्रधान जिनदत्तसूरि, पंचवर्गपरिहार नाममाला के प्रणेता जिनभद्रसूरि, रुद्रपल्ली की राजसभा में पदुमप्रभ को पराजित करने वाले मणिधारी जिनचन्द्रसूरि, षट्त्रिंशद् वादविजेता युगप्रवरागम जिनपतिसूरि, सनत्कुमार महाकाव्य प्रणेता उ० जिनपाल
१. देखें म. विनयसागर द्वारा संपादित 'खरतर गच्छ साहित्य सूची' (मणिधारी अष्टम शताब्दी समारोह ग्रन्थ) ।
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[ वल्लभ-भारती