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________________ किया, , परन्तु इसके करने में उन्हें जो चैत्यवासियों से समझौता करना पड़ा, उसके कारण सुविहित क्रान्ति की जो प्रचण्ड ज्वाला श्री जिनेश्वर ने एकाएक उत्पन्न कर दी थी वह कुछ दिनों के लिये मन्द पड़ गई और जनता के चित्त से वह लगभग उतरसी गई । उसी क्रान्ति की सुषुप्त और विस्मृतप्राय चिनगारियों को लेकर जैन समाज के जन-जन के मन में पुनः आग लगाने और सुविहित विचार-धारा के लिये अदम्य उत्साह एवं लगन उत्पन्न करने तथा चैत्यवास के विरुद्ध एक ब्यापक और विकराल आन्दोलन को पुनः जागरित करने का श्रीजिनवल्लभसूरि को है । श्रीजिनवल्लभसूरि आचार्य अभयदेव के पट्टधर थे और इनकी काव्य प्रतिभा, विद्वत्ता तथा वाक्पटुता की कीर्ति सर्वत्र व्याप्त थी । ३६ ] [ वल्लभ-भारती
SR No.002461
Book TitleVallabh Bharti Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaysagar
PublisherKhartargacchiya Shree Jinrangsuriji Upashray
Publication Year1975
Total Pages244
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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