SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 7
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ सूचनानुसार स्वप्न - सप्ततिका और आगमोद्धार एक ही ग्रन्थ है ।' किन्तु जिनपालोपाध्याय ने चर्चरी पद्य ३३ की टीका करते हुये लिखा है : -- "यत उक्त श्रीजिनवल्लभसूरिभिरागभोद्धारेश्रोसन्ना चिय तत्थेव इती चेइयवंदगा । जेसि निस्साइ तं भवर सड्ढाइह वि कारियं ॥ " जिनपालोध्याय उद्धत आगमोद्धार की यह गाथा स्वप्न-सप्तति में प्राप्त नहीं है । अतः स्वप्नसप्तति और आगमोद्धार दोनों पृथक्-पृथक् ग्रन्थ हैं और आगमोद्धार ग्रन्थ अभी तक अनुपलब्ध है। श्राभार : मूल ग्रन्थों की हस्तलिखित प्रतियां संकलन करने, समीक्षात्मक अध्ययन लिखने, विचार-विमर्श करने आदि में आगम प्रभाकर मुनिपुंगव स्व० श्री पुण्यविजयजी महाराज, स्व० आशुकवि उपाध्याय श्री लब्धिमुनिजी म०, स्व० अनुयोगाचार्य श्री बुद्धिमुनिजी म०, स्व० श्री रमणीकविजयजी महाराज, श्रद्ध ेय डॉ० फतहसिंहजी, श्री अगरचंदजी नाहटा, श्री भंवरलालजी नाहटा, डॉ० श्री बद्रीप्रसाद पंचोली आदि विद्वानों का मुझे समय-समय पर सहयोग तथा परामर्श प्राप्त होता रहा । अतः इन सब का मैं उपकृत हैं। साथ ही जिन लेखकों की कृतियों का मैंने इस ग्रन्थ में उपयोग किया हैं उन लेखकों का भी मैं कृतज्ञ हूँ । खरतरगच्छीया साध्वीश्रेष्ठा विदुषी श्री विनयश्रीजी महाराज का ११ जनवरी सन् १९७४ को जयपुर में स्वर्गवास हुआ। उन्हीं की स्मृति में श्री खरतरगच्छीय श्री जिनरंगसूरिजी गद्दी का उपाश्रय, व्यवस्थापक श्रीमाल सभा, जयपुर की ओर से इस वल्लभ-भारती के प्रथम खण्ड का प्रकाशन हो रहा है। इस प्रकाशन कार्य में श्रीमाल सभा जयपुर के सदस्यगण श्री लालचन्द्रजी वैराठी, श्री राजरूपजी टांक, श्री छुट्टनलालजी वैराठी, एवं भाई श्री राजेन्द्रकुमारजी श्रीमाल का अथक परिश्रम एवं अवर्णनीय सहयोग रहा है तथा मुनिराज श्री जयानन्दमुनिजी म० की सतत प्रेरणा रही है अतः इन सब का एवं विशेषतः श्रीमालसभा जयपुर का मैं हृदय से आभारी हूँ । अन्त में, मेरे परमपूज्य गुरुदेव खरतरगच्छालङ्कार गीतार्थ- प्रवर आचार्यश्रेष्ठ स्व० श्री जिनमणिसागरसूरिजी महाराज के वरद आशीर्वाद का ही प्रताप है कि मेरे जैसा अज्ञ व्यक्ति जिनवल्लभसूरि जैसे युगप्रवरागम आचार्य पर प्रस्तुत पुस्तक लिख सका । काश ! आज वे विद्यमान होते और मेरी इस कृति 'वल्लभ-भारती' को देखते तो न जाने उन्हें कितना हर्ष होता ! चैत्र शुक्ला १ सं० २०३२ महावीर निर्वाण संवत् २५०१ जयपुर म० विनयसागर
SR No.002461
Book TitleVallabh Bharti Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaysagar
PublisherKhartargacchiya Shree Jinrangsuriji Upashray
Publication Year1975
Total Pages244
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy