________________
वहां से निकट ही सेढी' नदी के पार्श्ववर्ती स्थान खंख रापलाश में पहुँच कर "जयतिहुअण वर" इत्यादि नूतन पद्यों से भगवान् पार्श्वनाथ की स्तुति की । और उसी समय भगवान् पार्श्वनाथ की मूर्ति भूमि से स्वयमेव प्रगट हुई और वही मूर्ति खंभात में नूतन देवालय बनाकर प्रतिष्ठित की गई जो आज भी मौजूद है । अशातावेदनीय का नाश होने से और भगवान् पार्श्वनाथ के प्रभाव से आचार्यश्री का रोग शान्त होभाया।
सुमति गणि रचित गणधरसार्द्ध शतक वृत्ति, उ० जिनपाल कृत युगप्रधानाचार्य गुर्वावली, जिनप्रभसूरि कृत विविध तीर्थकल्प और उपदेशसप्ततिका के अनुसार पार्श्वनाथ प्रतिमा प्रकट करने के पश्चात् आचार्यश्री ने नवाङ्गों पर टीका रची थी और प्रभावक चरित, प्रबन्ध-चिन्तामणि और पुरातन-प्रबन्ध-संग्रह के अनुसार नवाङ्ग टीका की पूर्णाहूति होने के पश्चात् स्तम्भन पार्श्वनाथ का प्रकटीकरण हुआ ?
___ इन दोनों कार्यों में से (स्तम्भन पाश्र्वनाथ स्थापना और नवाङ्ग वृत्ति रचना) प्रथम कौनसा कार्य हआ? इस पर भी जरा विचार करन
म अपने प्रत्यक्ष जीवन में अनुभव करते हैं कि आज की की हुई वार्ता जनता के मुख पर फैलती हुई कुछ समय बाद दूसरा ही रूप ले लेती है। यदि यही वार्ता का समय ५०-१०० वर्ष व्यतीत हो जाय तो उस वार्ता का रूपान्तर मात्र ही हमें प्राप्त होगा। इसी प्रकार आचार्य के जीवनवृत्त से सम्बन्धित समग्न ग्रन्थ १२५ और २५० वर्ष के मध्य में रचे गये हैं । अतः प्रारम्भ का अन्तिम और अन्तिम का प्रारम्भ स्वरूप ले ले तो कोई आश्चर्य नहीं।
मेरे नम्र मतानुसार यह भी सम्भव है कि वह समय चमत्कार का समय था। स्तम्भन पार्ननाथ का भूमि से प्रकट होना नवाङ्ग-वृत्ति रचना की अपेक्षा साधारण जनतां की दृष्टि में अत्यधिक महत्त्व रखता है। चमत्कार चमत्कार ही है जो साधारण से साधारण व्यक्ति भी इसकी जानकारी रखने में अपनी शान का अनुभव करता है और साहित्य-सृजन केवल विद्वान् ही जान पाते हैं । इस दृष्टि से पार्श्वनाथ की घटना चमत्कारपूर्ण होने से पूर्व में स्थान प्राप्त कर चुकी है । वस्तुतः नवाङ्ग टीका का कार्य आचार्य ने पूर्व में किया था और उपरि उल्लिखित अहर्निश जागरणादि कार्यों से आचार्य व्याधि-पीडित होने पर स्तम्भनक पधारे और उसी समय वहीं पर पार्श्वनाथ प्रतिमा का प्रकटीकरण किया।
एक प्रश्न यहां अवश्य ही विचारणीय हो सकता है कि आचार्य ने अपने टीका-ग्रन्थों के प्रारम्भ और अन्त में भगवान महावीर के साथ श्रीपार्श्वनाथ को भी स्मरण किया है, वह भी अधिकता से । इसलिये पार्श्वनाथ स्थापना के पश्चात् ही टीकाओं की रचना की हो । यह दलील मानी जा सकती है और नहीं भी ; क्योंकि पार्श्वनाथ स्थापना के पूर्व भी वे भगवान्
१. सेती नदी वस्तुतः खंभात के पास नहीं है किन्तु मही नदी है। हां, खेडा मातर के पास सेढी
नदी अवश्य है और उसके किनारे थांभरण नामक एक ग्राम भी है । सम्भव है 'थंभणयपुरठ्ठिय' इत्यादि में इसी को स्तम्भनपुर कहा हो । कालान्तर से किसी अज्ञात संयोगवश स्तम्भन पार्श्वप्रभु की प्रतिमा खंभात में लाई गई हो और इसी निमित्त से पिछले कुछ समय से खंभात का नाम स्तम्भतीर्थ, स्तम्भनपुर प्रचलित हो गया हो।
[बल्लभ-भारती