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________________ ८६९ "नमः प्रस्तुतानुयोगशोधिकायै श्रीद्रोणाचार्यप्रमुखपदे'' आदि पूज्य-शब्दों द्वारा प्रकट किया। इस प्रकार दोनों का सौजन्य, मिलनसारिता, समयज्ञता, सचमुच ही अन्ध-समाज के सन्मुख "सर्च लाइट" के समान प्रकाशकारिका सिद्ध हुई। आचार्य अभयदेव ने निम्नलिखित ग्रन्थों पर टीकाएं बनाई हैं:ग्रन्थनाम रचनासमय स्थल श्लोक परिमाण १. स्थानाङ्ग सूत्र वृत्ति ११२० पाटण १४२५० २. समवायाङ्ग सूत्र वृत्ति । ११२० ३५७५ ३. भगवती सूत्र वृत्ति ११२८ १८६१६ ४. ज्ञाता सूत्र वृत्ति ११२० ३८०० ५. उपासकदशा सूत्र वृत्ति ८१२ ६. अन्तकृद्दशा सूत्र वत्ति ७. अनुत्तरोपपातिक दशा सूत्र वृत्ति १६२ . ८. प्रश्नव्याकरण सत्र वृत्ति ४६०० ६. विपाक सूत्र वृत्ति ६०० १०. औपपातिक सूत्र वृत्ति ३१२५ ११. प्रज्ञापना तृतीय पद संग्रहणी १३३ १२. पञ्चाशक सूत्र वृत्ति ११२४ धोलका: ७४८० १३. सप्ततिका भाष्य । १६२ १४. बृहद् वन्दनकभाष्य १५. नवपद प्रकरण भाष्य ___ इनके अतिरिक्त कतिपय स्तोत्र आदि साहित्य भी उपलब्ध है:१. पञ्चनिन्थी २. आगम अष्टोत्तरी ३. निगोद षट्तिशिका ४. पृद्गल षनिशिका ५. आराधना प्रकरण गा० ८५ ६ . आलोयणाविधि प्रकरण गा० २५ . ७. स्वधर्मीवात्सल्य कुलक ८. जयतिहअण स्तोत्र गा०३० ६. वस्तु पार्श्वस्तव (देवदुत्थिय) गा० १६ १०. स्तम्भन पार्श्वस्तव गा०८ ११. पार्श्वविज्ञप्तिका (सुरनरकिन्नर ० प ० २२, जैसलमेर भंडार) १२. विज्ञप्तिका (जैसलमेर भं०) प ० २६ १३. पट्स्थान भाष्य गा० १७३ १४. वीरस्तोत्र गा० २२ १५. षोडशक टीका [पत्र ३७] १६. महादंडक १७. तिथि पयन्ना १८. महावीर चरित्र गा० १०८ (अपभ्रंश) १६. उपधानविधि पंचाशक प्रकरण गा० ५० शास्त्रार्थनिर्णयसूसौरभलम्पटस्य, विद्वन्मधूव्रतगणस्य सदैव सेव्यः । श्रीनिर्वृताख्यकुलसन्नदपद्मकल्पः, श्रीद्रोणसूरिरनवद्ययशःपरागः ।। शोधितवान् वृत्तिमिमां युक्तो विदुषां महासमूहेन । शास्त्रार्थनिष्कनिष्कषणकषपट्टककल्पबुद्धीनाम् ।। [भगवती वृत्ति प्रशस्तिः] ३२] [ वल्लभ-भारती १५१
SR No.002461
Book TitleVallabh Bharti Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaysagar
PublisherKhartargacchiya Shree Jinrangsuriji Upashray
Publication Year1975
Total Pages244
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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