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"नमः प्रस्तुतानुयोगशोधिकायै श्रीद्रोणाचार्यप्रमुखपदे'' आदि पूज्य-शब्दों द्वारा प्रकट किया। इस प्रकार दोनों का सौजन्य, मिलनसारिता, समयज्ञता, सचमुच ही अन्ध-समाज के सन्मुख "सर्च लाइट" के समान प्रकाशकारिका सिद्ध हुई।
आचार्य अभयदेव ने निम्नलिखित ग्रन्थों पर टीकाएं बनाई हैं:ग्रन्थनाम रचनासमय स्थल
श्लोक परिमाण १. स्थानाङ्ग सूत्र वृत्ति ११२० पाटण
१४२५० २. समवायाङ्ग सूत्र वृत्ति । ११२०
३५७५ ३. भगवती सूत्र वृत्ति ११२८
१८६१६ ४. ज्ञाता सूत्र वृत्ति ११२०
३८०० ५. उपासकदशा सूत्र वृत्ति
८१२ ६. अन्तकृद्दशा सूत्र वत्ति ७. अनुत्तरोपपातिक दशा सूत्र वृत्ति
१६२ . ८. प्रश्नव्याकरण सत्र वृत्ति
४६०० ६. विपाक सूत्र वृत्ति
६०० १०. औपपातिक सूत्र वृत्ति
३१२५ ११. प्रज्ञापना तृतीय पद संग्रहणी
१३३ १२. पञ्चाशक सूत्र वृत्ति ११२४ धोलका:
७४८० १३. सप्ततिका भाष्य ।
१६२ १४. बृहद् वन्दनकभाष्य १५. नवपद प्रकरण भाष्य
___ इनके अतिरिक्त कतिपय स्तोत्र आदि साहित्य भी उपलब्ध है:१. पञ्चनिन्थी
२. आगम अष्टोत्तरी ३. निगोद षट्तिशिका
४. पृद्गल षनिशिका ५. आराधना प्रकरण गा० ८५ ६ . आलोयणाविधि प्रकरण गा० २५ . ७. स्वधर्मीवात्सल्य कुलक
८. जयतिहअण स्तोत्र गा०३० ६. वस्तु पार्श्वस्तव (देवदुत्थिय) गा० १६ १०. स्तम्भन पार्श्वस्तव गा०८ ११. पार्श्वविज्ञप्तिका (सुरनरकिन्नर ० प ० २२, जैसलमेर भंडार) १२. विज्ञप्तिका (जैसलमेर भं०) प ० २६ १३. पट्स्थान भाष्य गा० १७३ १४. वीरस्तोत्र गा० २२
१५. षोडशक टीका [पत्र ३७] १६. महादंडक
१७. तिथि पयन्ना १८. महावीर चरित्र गा० १०८ (अपभ्रंश) १६. उपधानविधि पंचाशक प्रकरण गा० ५०
शास्त्रार्थनिर्णयसूसौरभलम्पटस्य, विद्वन्मधूव्रतगणस्य सदैव सेव्यः । श्रीनिर्वृताख्यकुलसन्नदपद्मकल्पः, श्रीद्रोणसूरिरनवद्ययशःपरागः ।। शोधितवान् वृत्तिमिमां युक्तो विदुषां महासमूहेन । शास्त्रार्थनिष्कनिष्कषणकषपट्टककल्पबुद्धीनाम् ।।
[भगवती वृत्ति प्रशस्तिः] ३२]
[ वल्लभ-भारती
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