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________________ के लिये अपने प्राणों की बाजी भी लगा देते थे। राजपूत स्त्रियों में भी पति-भक्ति, सत्यनिष्ठा और साहस के गुण चरम उत्कर्ष को प्राप्त हुए थे। वे शत्रु से युद्ध करने के लिये युद्ध-क्षेत्र में भी जाती थीं। सतीत्व की रक्षा के लिये वे अपने शरीर को भी अग्नि को अर्पित कर देती थीं। इस काल की प्रकाण्ड विदुषी राजशेखर की पत्नी अवन्तीसुन्दरी चौहान वंश की कुमारी थी। राजपूत स्त्रियों में शिक्षा का प्रचार अन्य वर्गो से अधिक था। उनको चित्रकला, संगीत, नृत्य के साथ शस्त्रचालन व घुड़सवारी की शिक्षा भी मिलती थी। कुछ स्त्रियों ने इस काल में शासन-व्यवस्था और युद्ध-कार्य में भी अपना कौशल प्रकट किया है। दक्षिण में सोलंकी विक्रमादित्य की बहिन अक्कादेवी ने चार प्रदेशों पर बड़ी कुशलतापूर्वक शासन किया था। उसने बेलगांव के गोकागे किले को भी घेरा था। गुजरात में मयणल्लदेवी भी शासन-कार्यों में भाग लेती थी। राजपूतों की देखादेखी अन्य लोगों में भी बालविवाह की प्रथा का प्रसार हो रहा था। अपने प्रभाव और सत्ता के कारण राजपूत-वर्ग समाज का प्रमुख वर्ग बन गया था। उनमें मदिरा सेवन, मिथ्याभिमान आदि दुर्गुण भी उत्पन्न हो गए थे। प्राचीन परिषदों की प्रथा को मिटा कर वे निरंकुश शासक बन चुके थे। राजपूतों में कन्याहनन जैसे जघन्य कार्य भी होते थे। फिर भी प्रेम और शौर्य में राजपूतों की समता करने वाला कोई नहीं था। राजपूतों के बढ़ते हुए प्रभाव से घबरा कर ब्राह्मणों ने सामाजिक-बन्धन कठोर कर दिये । शिल्पिसंघ अलग-अलग जातियों के रूप में परिणत हो गए। जातियों का विभाजन सामाजिक दृष्टि से राष्ट्रीय पतन का कारण बन गया। जातीय हितों के सामने राष्ट्रीयता गौण होती चली गई। जातियों की सीमाए दुर्लध्य हो जाने से भारतीय समाज का वह महान् गुण नष्ट हो गया जिससे वह विदेशी जातियों को अपने में पचाने में समर्थ हुआ था। समाज की इस पाचन-शक्ति के अभाव ने भारत देश को सबसे अधिक हानि पहुँचाई है। इतना होते हुए भी कर्म-स्वातंत्र्य , अब तक बना हुआ था। हां, शिल्पों पर एक मात्र शूद्रों का अधिकार होता जा रहा था। खान-पान में लोग अब भी अहिंसक-सिद्धान्तों से प्रभावित थे। मांस का प्रयोग कम होता था। राजपत लोग शिकार करते और मांस खाते थे। मदिरा सेवन भी राज में अधिक प्रचलित था। उनमें अफोम खाने का दुर्व्यसन भी बढ़ रहा था। कुलीन लोग ताम्बूल भक्षण करते थे। धूम्रपान का प्रचलन नहीं हुआ था। इस काल के समाज के निम्नवर्गों के विषय में बहुत ही कम जानकारी मिलती है। इतना कहा जा सकता है कि वे अपने में सन्तुष्ट थे। खेती,पशुपालन और आखेट से वे अपनी आजीविका चला लेते थे। इससे अधिक जीवन में वे कुछ इच्छा नहीं रखते थे। कभी-कभी वे सेना में भी भरती हो जाते थे। गुजरात में समुद्रतट पर कुछ मुसलमान लोग भी आ बसे थे । राज्य की ओर से उन्हें संरक्षण और धार्मिक स्वतन्त्रता प्रदान की गई थी परन्तु वे हिन्दू-समाज पर किसी प्रकार के प्रभाव की स्थापना नहीं कर पाये थे। संक्षेप में कहा जा सकता है कि ईसा की ग्यारहवीं शती तक आते-आते भारतीय समाज की पाचन-शक्ति व आत्मीकरण की प्रवृति नष्ट हो गई। समाज अनेक जातियों वल्लभ-भारती] [ १३
SR No.002461
Book TitleVallabh Bharti Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaysagar
PublisherKhartargacchiya Shree Jinrangsuriji Upashray
Publication Year1975
Total Pages244
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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