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________________ काव्य की ओर लोक-सामान्य की इतनी रुचि होने से प्रकट है कि लोगों की आर्थिक दशा अच्छी थी । विमलशाह ने आबू में देलवाड़े का जैन मन्दिर बनाया था, जिसमें उस समय करोड़ों रुपये खर्च हुए होंगे । पाटण का वैभव सारे भारत में प्रसिद्ध था। पाटण के अतिरिक्त धारानगरी, आघाट नगर, चित्रकूट (चितोड), उज्जयिनी, चन्द्रावती, सोमनाथपुरी उस समय के प्रसिद्ध नगर थे। ये केवल राज्यों के केन्द्र होने से ही समृद्ध नहीं थे, वरन् तत्कालीन भारत के व्यापारिक केन्द्र भी थे। पाटण के वैभव को देख कर मालवा के शासक कई बार उसे लूटने गये थे। इस लोभ के कारण ही मालवा और पाटण में आपस में शत्रुता बनी रही। यह माना जा सकता है कि अच्छी आर्थिक स्थिति वाले लोग ही नगरों में बसते होंगे। भीमदेव, कर्ण आदि के शासन काल में गुजरात के ग्रामीण भीलों व कोलियों ने उपद्रव किए थे। भील लोग जंगलों में यात्रियों को लूट लेते थे। इसका कारण कदाचित् उनकी आर्थिक स्थिति अच्छी न होना ही होगा। सारा धन नगरों व मंदिरों में एकत्रित हो गया था। यवन आक्रान्ताओं ने मन्दिरों को तोड़ कर अतुल सम्पत्ति प्राप्त की थी। ग्यारहवीं शती में भारतीय समाज में अनेक जातियां उत्पन्न हो गई थी। 'ब्राह्मण, क्षत्रिय (कई शाखाओं में विभक्त), महाजन, कायस्थ आदि ऊंची जातियों के अतिरिक्त दर्जी, सुनार, लुहार, बढई, कुम्हार, माली, नाई, धोबी, जाट,गूजर, मैर, कोली, बलाई, रंगर, महतर आदि जातियां बन गई थी। इसके पहले जाति-पांति व खान-पान के बन्धन इतने कठोर न थे। राजशेखर की पत्नी चौहान वंश की थी। एक ही व्यक्ति दो अलग जातियों में भी विवाह कर सकता था। परन्तु ग्यारहवीं शती में ऐसा कोई उदाहरण नहीं मिलता जब किसी ब्राह्मण ने इतर जाति में विवाह किया हो । खान-पान के आधार पर ब्राह्मणों के पंच गौड और पंचद्रविड़ भेद इसी समय हो गए थे। जातियों में देश-भेद भी माना जाने लगा था। राजपूतों में जाति-भेद के नियम अब भी ढीले थे । वे दूसरी जाति में विवाह भी कर सकते थे। मीने,. भील, भोगिये, गिरासिये आदि जंगली जातियां थीं। नगर के लोगों का प्रधान व्यवसाय व्यापार तथा गांव के लोगों का खेती व पशुपालन था। गुजरात, मालवा और राजपूताना में शिक्षा का प्रचार राज्य की ओर से होता था। पाणिनीय व्याकरण की दुरूहता को दूर करने के लिये कातन्त्र व्याकरण को रचना हुई थी। प्रादेशिक भाषाओं में उसका प्रचार बढता जा रहा था। शिक्षा प्रणाली प्राचीन थी। वलभी का विश्वविद्यालय इस समय तक नष्ट हो गया था । कुलीन लोगों की भाषा संस्कृत थी। संस्कृत के माध्यम से ही दर्शन, अर्थशास्त्र, वैद्यक आदि की शिक्षा दी जाती थी। प्रादेशिक भाषाओं की शिक्षा भी दी जाती थी। उज्जयिनि मध्यभारत में शिक्षा का केन्द्र था। भोज ने धारानगरी में 'सरस्वती कण्ठाभरण' नामक तथा विग्रहराज चतुर्थ ने अजमेर में शिक्षण संस्था की नींव डाली थी। विद्या निःशुल्क पढ़ाई जाती थी और १. भारतीय सभ्यता तथा संस्कृति का इतिहास : लूनिया २. भारत का इतिहास : ईश्वरीप्रसाद, बल्लभ-भारती]
SR No.002461
Book TitleVallabh Bharti Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaysagar
PublisherKhartargacchiya Shree Jinrangsuriji Upashray
Publication Year1975
Total Pages244
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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