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पंडित होने का अवसर भी मिला था। उनकी धर्म-साधना व धर्मप्रचार कार्य अनवरत रूप से चलता था । योग्य शासकों के उदार शासन में जैन धार्मिक साहित्य की प्रभूत उन्नति हुई । कलिकाल सर्वज्ञ हेमचन्द्राचार्य इस संधियुग की - मध्ययुग और प्राचीन युग के मध्य का यह धिग ही था - सर्वमान्य विभूति के रूप में प्रसिद्ध हैं । खरतरगच्छ के आचार्यों में प्रमुख जिनवल्लभसूरि भी इस काल के प्रसिद्ध साहित्यकार थे ।
सामाजिक अवस्था
आचार्य जिनवल्लभ का समय ईसा की ग्यारहवीं शती का अन्तिम व बारहवीं शती का प्रथम चरण । जैसा कि राजनैतिक दशा का वर्णन करते समय बताया जा चुका है। कि बाह्याक्रमणों का भय सर्वदा बने रहने पर भी दक्षिणी राजस्थान, गुजरात, मालवा, कर्णाट आदि प्रदेशों के लोग पूर्ण शान्ति का अनुभव करते थे । आचार्य शंकर ने आठवीं शती में धार्मिक दिग्विजय करके भारत से बौद्धधर्म का उच्छेद कर दिया था। प्राचीन वैदिक धर्म की ओर अनिच्छा पूर्वक आकृष्ट होने वाले सामान्य स्थिति के लोगों को इस समय जैन-धर्माचार्यों की वाणी में अवलम्ब मिला और वे किसी न किसी रूप में उनसे प्रभावित हुए बिना न रह सके ।
दक्षिण गुजरात में बौद्धों की वज्रयान शाखा के लोगों ने नवीन तंत्र प्रणाली को विकसित किया था। अभिचार - क्रियाओं द्वारा वे लोगों को आतंकित व प्रभावित करते थे । इनके प्रभाव के कारण जन-साधारण में यहां तक कि जैन धर्मावलम्बियों में भी शिवपूजा का प्रचार बढता जा रहा था। इस काल के बने हुए हजारों शिव मंदिर इस क्षेत्र में मिले हैं। विदेशी क्षत्रप और महाक्षत्रपों ने शिवपूजा का प्रचार सबसे पहले किया था । "
दशमशती के पूर्व ही ब्राह्मण वर्ण का सम्मान कम होना प्रारम्भ हो गया था । २ केवल ब्राह्मण होने के कारण इस समय सम्मान मिलना कठिन था। हां, विद्वान् ब्राह्मणों का आदर अब भी होता था। कई शासकों ने ब्राह्मणों को गांव दान में दिये थे। ये दान-पत्र उन शासकों की उदारता को तो प्रकट करते ही हैं साथ ही ऐतिहासिक घटनाओं को जानने के भी एकमात्र उपलब्ध प्रमाण हैं ।
मुञ्ज, भोज, सिद्धराज, कुमारपाल आदि विद्वानो के आश्रय दाता थे। यह प्रसिद्ध है कि धारानगरी में जुलाहे तक कविता करते थे । एक जुलाहे का यह श्लोक प्रसिद्ध है :काव्यं करोमि न हि चारुतरं करोमि
यत्नात् करोमि यदि चारतरं करोमि
१. भारतीय सभ्यता तथा संस्कृति का इतिहास : लूनिया
२ . वही :
३. भारत के प्राचीन राजवंश में भोज, मुञ्ज, सिद्धराज के वर्णन
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[ वल्लभ-भारती