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________________ चित्र सं० ७. त्रिशूलबन्ध चित्र सं०८ शरबन्ध - चित्र सं० २ धनुबंध - चित्र सं० ११. सबन्ध - चित्र सं० २५ शक्तिबन्ध - नरौषः स्थिरसंलाभकांक्षी जिन जितश्रम । मदनो नोदमस्वाद - दद्यादस्तवमस्तव ॥ ३ ॥ चित्र सं० २० मुसलबन्ध नश्यन्ति तत्क्षणादेव स्मृत्या तव ततस्तव । वधपापादपापास्तः सद्वो वचननिश्चितम् ।। ४ ।। न स पाएवं भवारातेः कृतेः क्षोभं स साध्वस समेति यः करोत्यन्तस्यां सत्कुल सुशीलज || ६॥ नमन्त जिन भावेन शालीमननाशक । कल्याणेषु सदा सर्वां समुत्थे मान्यशासन ||२|| - नमल्लोकतटेर्भावे बंधो वृजिन वामन । नमस्ते भवभीवंभारभाव नयनक्षम ॥२॥ नयनः पाश्र्वं भवभी संवाधाल्लघुशाश्वतं । तन्द्रालुनभवावासं भीमभक्तास ||५|| X X X X X चित्र संख्या १७,२३, १५, २४, २६, ३० छहों षडारकबन्ध चक्रकाव्य हैं। इन चक्रकाव्यों में अक्षरों को स्थापन करने की पद्धति इस प्रकार है : चक्र में ६ धारक ( धारे) है, मध्य में नाभि है और चारकों के ऊपर गोलाकार चक्र है। पहले धारक में श्लोक के प्रथम चरण के २ से २ अक्षर और चौबे पारक में इसी प्रथम चरण के ११ से १५ अर्थात् आठ ग्राठ अक्षर लिखे जाते हैं। इसी प्रकार दूसरे और पांचवें धारक में द्वितीय चरण के एवं तीसरे तथा छठे आरक में तृतीय चरण के २ से ६ और ११ से १८ जाते हैं। मध्य नाभि भाग में प्रथम द्वितीय तृतीय चरणों का १० कि प्रारम्भ के तीनों ही चरणों में १०वां अक्षर नियमानुसार एक ही होता है, अर्थात् इस प्रक्षर की त्रिरावृत्ति होती है। ऊपर के गोलाकार व ( हाल में धारक में संलग्न छह स्थान है। इसमें से प्रारम्भ की १-२-३ तीनों शिराम्रों में तीनों चरणों के प्रथम अक्षर और शेष ४-५-६ शिराम्रों में तीनों चरणों के अन्तिम अक्षर क्रमशः स्थापित किये जाते हैं। इस प्रकार तीनों चरणों के प्राद्यन्ताक्षर की द्विरावृत्ति प्रर्थात् माठ म्राठ अक्षर क्रमशः लिखे अक्षर स्थापित किया जाता है जो चक्र में शेष स्थानों के होती है और केवल तृतीय चरण के अन्तिमाक्षर की पढ़ने में परावृत्ति होती है मध्य में छहों रिक्त स्थानों पर चतुर्थ चरण के दो-दो अक्षर क्रमशः २-३ ५-६ १ ११ १२ १४-१५ ; १७-१८ अक्षर स्थापित किये जाते हैं। चतुर्थ चरण के १. ४, ७, १०, १३, १६ और १२वां अक्षर जो सात अक्षर शेष हैं वे नियमानुसार प्रारम्भ के तीनों चरणों के मायन्ताक्षर होते हैं। अर्थात् प्रथम द्वितीय तृतीय चरण का प्रथमाक्षर जो होता है वही नियमित रूप से चतुर्थ चरण में ४, ७, १०वां प्रक्षर २ ] [ वल्लभ-भारती
SR No.002461
Book TitleVallabh Bharti Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaysagar
PublisherKhartargacchiya Shree Jinrangsuriji Upashray
Publication Year1975
Total Pages244
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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