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________________ तपागच्छीय संविग्नपक्षीय प्रसिद्ध विद्वान् जिनविजयजी, उत्तमविजयजी, विवेकविजयजी' आदि ने आपके पास महाभाष्य जैसे महान् ग्रन्थों का विधिवत् अध्ययन किया था । उस समय ढूंढक ( स्थानकवासी ) लोग प्रतिमा-अर्चन का जो आत्यन्तिक निषेध कर रहे थे उन्हीं के नेता माणिकलालजी आदि को आपने मूर्तिपूजक बनाया । भावनगर के महाराजा आपके भक्त थे । अहमदाबाद की शान्तिनाथ पोल में सहस्रफणा बिंब, सहस्रकूट जिनबिंब, शत्रु जय पर प्रतिष्ठा, लींबड़ी, धांगध्रा, चूडा इत्यादि अनेक स्थलों पर आपने प्रतिष्ठाएं करवाई । सं० १८१२ में अहमदाबाद में गच्छनायक ने आपको उपाध्याय-पद प्रदान किया और सं० १८१२ भाद्रपद कृष्णा अमावस्या को अहमदाबाद में आपका स्वर्गवास हुआ । आप एकपक्षीय विद्वान् नहीं थे। जहां जिनविजयजी जैसे विद्वान् आपके पास महाभाष्य पढ़ते थे वहां आप भव्य - परोपकारार्थ व्याख्यान में गोमट्टसारादि दिगम्बर ग्रन्थों का भी प्रयोग करते थे । ध्यानदीपिका, आयमसार, द्रव्य प्रकाश जैसे उच्च कोटि के ग्रन्थों को भाषा में प्रणयन करते थे तथा ज्ञानसार जैसे ग्रन्थों पर संस्कृत टीका की रचना करते थे । आप बहुत एवं बहुज्ञ थे। आपने द्रव्य प्रकाश ब्रजभाषा में बनाया है । आपकी समस्त रचनाओं का संग्रह श्रीमद् देवचन्द्र नाम से दो भागों में अध्यात्मज्ञान प्रसारक मंडल पादरा द्वारा प्रकाशित हो चुका है। अतः रचित साहित्य के संबंध में यहां उल्लेख करना पिष्टपेषण मात्र हो होगा ।. लघु अजित शान्तिस्तव की प्रति का अभी तक हमें पता नहीं चल सका है; संभवतः वह अप्राप्य है । उपाध्याय जयसागर ओसवाल वंश के दरडागोत्रीय पिता आसूराज और माता सोखू के आप पुत्ररत्न थे । जिनराजसूरि आपके दीक्षा गुरु थे और आपके विद्यागुरु थे जिनवर्धनसूरि । सं० १४७५ में या उसके आस-पास ही आचार्य जिनभद्रसूरि ने आपको उपाध्याय पद से अलंकृत किया था । आचार्य जिनभद्रसूरि ने जो ग्रन्थोद्धार का महत्त्वपूर्ण कार्य प्रारंभ किया था उसमें आपका पूर्ण सहयोग था । आपने भी अपने उपदेशों से बहुत से ग्रन्थ लिखवाये जो जैसलमेर, पाटण आदि के भंडारों में आज भी उपलब्ध हैं । आप साहित्य के उच्चकोटि के मर्मज्ञ थे । आपने कई मौलिक-ग्रन्थों, टीकाओं एव स्तोत्रों की रचनाएं कीं जिसमें से कई तो काल - कवलित हो चुकी हैं और कई शोध के अभाव में अभी तक उपलब्ध नहीं हुई हैं। वर्तमान में जो कुछ साहित्य उपलब्ध है उनमें से पर्वरत्नावली, विज्ञप्ति त्रिवेणी, पृथ्वीचन्द्र चरित्रादि मौलिक, संदेहदोलावली बृत्ति आदि ६ टीका ग्रन्थ, जिनकुशलसूरि छन्द आदि ३३ भाषा-कृतियां एवं तीर्थमाला स्तव स्तोत्र आदि फुटकर १. जिनविजय निर्वाणरास तथा उत्तमविजय निर्वाणरास देखें । वल्लभ-भारती ] [ १७३
SR No.002461
Book TitleVallabh Bharti Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaysagar
PublisherKhartargacchiya Shree Jinrangsuriji Upashray
Publication Year1975
Total Pages244
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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